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________________ अध्यात्मसार: 3 163 उनके और आपके बीच साढ़े तीन हाथ का अन्तर होना चाहिए। समाज हर समय बदलता है, रीति एवं व्यवहार के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपने-अपने ढंग से जीते हैं, परन्तु वास्तविक यह है। - जैन एवं हिन्दू संन्यास-हिन्दू संन्यास में भी ब्रह्मचर्य के नियम हैं। कई जगह अति तीव्र हैं, कई जगह नहीं क्योंकि वहाँ पर अनेक विभिन्न परम्पराएँ है। अधिकांश ऋषि विवाह करते हैं। अधिकांश लोग प्रौढ़ अवस्था में संन्यास लेते हैं, क्योंकि उनके यहाँ यह रिवाज है; परन्तु जिनशासन में ब्रह्मचर्य की अनेक सूक्ष्म मर्यादाएं दी हैं; क्योंकि यहाँ पर साधना हेतु बाल्य एवं युवावस्था पर अधिक जोर दिया गया है। 1. जब शारीरिक एवं मानसिक ऊर्जा तीव्र होती है, 2. जिनशासन की साधना की गति भी तीव्र है, तब कर्मों की उदीरणा भी तीव्र होगी और जितनी भी साधना तीव्र हो, उतनी अधिक सुरक्षा आवश्यक है। जितना हीरा मूल्यवान हो, उतनी ही सम्भाल - जरूरी। जितनी दवाई प्रभावकारी हो, उतना ही परहेज भी जरूरी है। साधारण दवाई के साथ कोई परहेज आवश्यक नहीं है। इस साधना में जितनी ऊँचाई भी है, यदि गिर पड़े तो उतनी बड़ी खाई भी है, जैसे दस हजार का हीरा हो यदि वह खो जाए तब नुकसान भी दस हजार का ही होगा और यदि दस लाख का हीरा हो तब पास में सम्पत्ति दस लाख की है और यदि खो जाए तो नुकसान भी दस लाख का है। अतः वीर पुरुष ही इस मार्ग पर चलते हैं। इस प्रकार इतने नियम उपनियम आवश्यक हैं। साधना की इतनी तीव्रता के कारण उसे संभालना भी जरूरी है। जब कर्मों का तीव्र उदय होता है और उस उदय वश कोई न कोई निमित्त ऐसा आता है जो साधक को साधना से डिगाता है। इसलिए इतने नियम-उपनियम आवश्यक हैं। इसमें भी विशिष्ट साधना हेतु जिन-कल्प का आचार है। लेकिन हुआ यह कि हम नियम उपनियम में ही उलझ गये, साधना इतनी नहीं रही। इसी कारण वर्तमान में अनेक लोग प्रश्न करते हैं कि क्या इतने नियम-उपनियम आवश्यक हैं, क्योंकि जो नियम-उपनियम का पालन करते हैं, और नहीं करते हैं, उन दोनों की मनोदशा में विशेष अन्तर नहीं दिखाई देता। आभ्यंतर साधना के अभाव के कारण, वही राग-द्वेष ईर्ष्या नजर आती है। यदि साधक में कोई विलक्षण उपशान्तता हो, तब नियमों पर यह प्रश्न नहीं आते, लेकिन ऐसे साधक बहुत कम हैं।
SR No.002206
Book TitleAcharang Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages1026
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size19 MB
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