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भगवान महावीर के 2600 वें जन्मकल्याणक के परम पुनीत प्रसंग पर मेरे हृदयोद्गारों को जानने के बाद श्रावक रत्न श्री हीरालाल जी जैन, श्री राजेन्द्रपाल जी जैन, श्री टी. आर. जी जैन, श्री रामकुमार जी जैन आदि श्रावकों ने न केवल इस बृहद् कार्य को अपने हाथों में लिया, अपितु मुझे भी शत-गुणित उत्साहित किया। . उसी के फलस्वरूप अल्पावधि में आचारांग का प्रथम श्रुतस्कन्ध आपके हाथों में पहुंच रहा है।
-आचार्य शिवमुनि