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मति ज्ञान और श्रुतज्ञान में परस्पर साधर्म्य ___ पांच ज्ञानों में सर्वप्रथम मतिज्ञान, तत्पश्चात् श्रुतज्ञान, यह क्रम सूत्रकार ने क्यों अपनाया है? श्रुतज्ञान को पहले प्रयुक्त क्यों नहीं किया? जबकि श्रुतज्ञान स्व-पर कल्याण में परम सहायक है।
सूत्रकार ने पांच ज्ञान का क्रम जो रखा है, वह स्वाभाविक ही है, इसके पीछे अनेक रहस्य छिपे हुए हैं। नन्दीसूत्र में 'सुयं मइपुव्वं' ऐसा उल्लेख किया हुआ है, इसका अर्थ-श्रुत मतिपूर्वक होता है, न कि श्रुतपूर्वक मति होती है। उमास्वाति जी ने भी श्रुतज्ञान को मतिपूर्वक ही कहा है'। इन उद्धरणों से यह स्वयं सिद्ध है कि मतिज्ञान जो पहले प्रयुक्त किया है, वह निःसन्देह उचित ही है। वैसे तो मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का अस्तित्व भिन्न ही है, फिर भी उनमें जो साम्य है, उसका उल्लेख भाष्यकृत् एवं वृत्तिकृत् ने बड़ी रोचक एवं नई शैली से प्रस्तुत किया है, जो निम्न प्रकार है... १. स्वामी-जो मतिज्ञान के स्वामी हैं, वे ही श्रुतज्ञान के स्वामी हैं, जत्थ मइनाणं, तत्थ सुयनाणं, जत्थ सुयनाणं तत्थ मइनाणं अर्थात् जहां मतिज्ञान है वहां श्रुतज्ञान है, जहां श्रुतज्ञान है वहां मतिज्ञान है। इस प्रकार दोनों में स्वामित्व की दृष्टि से समानता है।
२. काल-मतिज्ञान का काल (स्थिति) जितना है, उतना ही श्रुतज्ञान का है। इन दोनों का काल सहभावी है। ये दोनों ज्ञान एक जीव में निरन्तर अधिक से अधिक 66 सागरोपम से कुछ अधिक काल तक अवस्थित रह सकते हैं, तत्पश्चात् जीव केवलज्ञान को प्राप्त करता है या मिथ्यात्व में प्रविष्ट हो जाता है अथवा मिश्रगुणस्थान में अन्तर्मुहूर्त के लिए प्रविष्ट हो जाता है और उक्त दोनों गुणस्थानों में दोनों ज्ञान अज्ञान के रूप में परिणत हो जाते हैं। अत: काल की अपेक्षा दोनों में समानता है। .... ३. कारण-जैसे इन्द्रिय और मन यह मतिज्ञान के निमित्त हैं, वैसे ही श्रुतज्ञान के भी उपर्युक्त छः ही कारण हैं। अत: कारण की दृष्टि से दोनों में समानता है।
४. विषय-जैसे आदेश से मतिज्ञान के द्वारा सर्व द्रव्यों को जाना जाता है, वैसे ही श्रुतज्ञान के द्वारा भी जाना जाता है। जैसे मतिज्ञान के द्वारा द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव इन विषयों को जाना जाता है, वैसे ही श्रुतज्ञान के द्वारा भी, किन्तु सर्वपर्यायों का विषय मति-श्रुत का नहीं है, इस दृष्टि से दोनों में समानता है।
५. परोक्षत्व-जैसे मतिज्ञान परोक्ष प्रमाण है, वैसे ही श्रुतज्ञान भी नन्दीसूत्र में, तथा तत्त्वार्थसूत्र में मति और श्रुतज्ञान दोनों को परोक्ष प्रमाण में अन्तर्निहित किया है। इस अपेक्षा से भी दोनों में समानता पाई जाती है। जैसे कि कहा भी है
1. तत्त्वार्थ सूत्र, अ. 1, सू. 20
2. देखो सूत्र 24 वां। 3. तत्त्वार्थ सूत्र अ01 सूत्र 11