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(प्रकाशकीय
श्री नन्दीसूत्रम् जैनागम वाड्.गमय का मुख्य आगम है। प्रस्तुत आगम चार मूलसूत्रों में तृतीय क्रम पर है। इस आगम में पांच ज्ञान का विशद विश्लेषण संकलित है। ज्ञान ही जीवन में प्रकाश का पथ प्रशस्त करता है. इस दृष्टि से यह आगम विशेष रूप से आदरणीय बन जाता है। इस आगम के अर्थरूप में उपदेष्टा स्वयं तीर्थंकर महावीर हैं और सूत्ररूप में ग्रथित करने वाले गणधरदेव हैं। अढाई हजार वर्ष पूर्व उपदिष्ट और संकलित इस आगम पर आचार्य सम्राट श्री आत्माराम जी महाराज ने विशद व्याख्या लिखकर वर्तमान विश्व पर महान उपकार किया है। आचार्य देव ने तीर्थंकर महावीर के उपदेशों को राष्ट्रभाषा में सरल शब्दावलि में अनुदित करके अज्ञ-विज्ञ मुमुक्षुजनों के लिए सत्य को जानने का द्वार उद्घाटित किया है। अपने इस महनीय कार्य के लिए आचार्य देव सदैव अर्चनीय, वन्दनीय और स्मरणीय बने रहेंगे।
आचार्य देव ने आज से साढ़े चार-पांच दशक पूर्व जैनागमों पर व्याख्याएं लिखीं। उन द्वारा लिखी गईं व्याख्याएं उस युग से लेकर वर्तमान पर्यंत जैन जगत में सर्वाधिक प्रतिष्ठित और पठित व्याख्याएं रही हैं। जैन धर्म की चारों परम्पराओं में आचार्य देव द्वारा व्याख्यायित आगम प्रमाण रूप माने जाते हैं। .
- आचार्य देव द्वारा व्याख्यायित कई आगम उनके जीवन काल में और कई आगम उनके स्वर्गारोहण के पश्चात् प्रकाशित हुए, परन्तु उन द्वारा सृजित समस्त साहित्य अभी तक सर्वसुलभ नहीं बन पाया है जो काफी कष्टप्रद है। इस बिन्दु पर वर्तमान श्रमण संघीय आचार्य देव श्री शिव मुनि जी म. ने अपना ध्यान केन्द्रित किया और आचार्य देव के समस्त प्रकाशित-अप्रकाशित आगम-आगमेतर साहित्य को सर्वसुलभ बनाने के लिए महत्संकल्प लिया। आचार्य श्री के संकल्प के साथ हजारों मुमुक्षुओं के संकल्प जुड़े और आत्म-ज्ञानश्रमण-शिव आगम प्रकाशन समिति का गठन हुआ।
इस समिति के तत्वावधान में त्वरित गति से आगम प्रकाशन का कार्य प्रारंभ हुआ। अल्प समय में ही कई आगम सर्वसलभ बन गए। आचार्य देव के संकल्प का अनुगामी समग्र जैन संघ इस श्रुतसेवा के महायज्ञ से जुड़ चुका है। हमें आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आचार्य देव के मार्गदर्शन में हम शीघ्र ही शेष साहित्य को भी सर्व सुलभ बनाने में सफल होंगे। ___-आत्म-ज्ञान-श्रमण-शिव आगम प्रकाशन समिति, लुधियाना
एवं -भगवान महावीर मेडिटेशन एण्ड रिसर्च सेंटर ट्रस्ट, नई दिल्ली