SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 471
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ है। इसके उत्तर में कहा जाता है कि जिनके लौकिक जीवन और लोकोत्तरिक जीवन में समानता सूत्रकारों ने देखी, उनका ही उल्लेख इस में किया गया है, जैसे कि दसों ही सेठ कोट्याधीश थे, राजदरबार में माननीय थे और प्रजा के भी। सभी के पास 500 हल की - जमीन थी, गोजाति के अतिरिक्त अन्य पालतू पशु उनके पास नहीं थे। जितने करोड़ व्यापार में धन लगा हुआ था, उतने व्रज गौओं के थे। सभी महावीर के उपदेश से प्रभावित हुए थे, सभी ने पहले ही उपदेश से प्रभावित होकर 12 व्रत धारण किए थे। सभी ने 15वें वर्ष में गृहस्थ धन्धों से अलग होकर पौषधशाला में रहकर धर्माराधना की। जिज्ञासुओं को यह स्मरण रखना चाहिए कि जो आयु लौकिक व्यवहार में व्यतीत हुई, उसका यहां कोई उल्लेख नहीं। जब से उन्होंने 12 व्रत धारण किए, सूत्रकार ने तब से लेकर आयु की गणना की है। 15वें वर्ष के कुछ मास बीतने पर उन्होंने 11 पडिमाओं की आराधना करनी प्रारम्भ की। सभी को एक महीने का संथारा सीझा। सभी पहले देवलोक में देव बने। सभी को चार पल्योपम की स्थिति प्राप्त हुई। सभी महाविदेह में जन्म लेकर निर्वाण पद प्राप्त करेंगे। सभी को अपनी आयु के 20 वर्ष शेष रहने पर ही धर्म की लगन लगी, इत्यादि अनेक दृष्टियों से उनका जीवन समान होने से दस श्रावकों का ही इसमें उल्लेख किया गया है। अन्य श्रावकों में ऐसी समानता न होने से उनका उल्लेख इस सूत्र में नहीं किया गया है। शेष वर्णन पूर्ववत् ही समझना चाहिए ।। सूत्र 52 ॥ श्री अंतकृद्दशांग सूत्र , मूलम्-से किं तं अंतगडदसाओ ? अंतगडदसासुणं अंतगडाणं नगराई, उज्जाणाइं, चेइआइं, वणसंडाई, समोसरणाइं, रायाणो, अम्मापियरो, धम्मायरिया, धम्मकहाओ, इहलोइअ- परलोइआं इढिविसेसा, भोगपरिच्चागा, पवज्जाओ, परिआगा, सुअपरिग्गहा, तवोवहाणाई, संलेहणाओ, भत्तपच्चक्खाणाइं, पाओवगमणाई, अंतकिरिआओ आघविज्जंति। अंतगडदसासु णं परित्ता वायणा, संखिज्जा अणुओगदारा, संखेज्जा वेढा, संखेज्जा सिलोगा, संखेज्जाओ निज्जुत्तीओ, संखेज्जाओ संगहणीओ, संखेज्जाओ पडिवत्तीओ। से णं अंगठ्याए अट्ठमे अंगे, एगे सुअक्खंधे, अट्ठ वग्गा, अट्ठ उद्देसणकाला, अट्ठ समुद्देसणकाला, संखेज्जा पयसहस्सा पयग्गेणं, संखेज्जा अक्खरा, अणंता गमा, अणंता पज्जवा, परित्ता तसा, अणंता थावरा,
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy