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________________ धर्मचर्या, गति, संथारा और सिद्धत्व प्राप्त करने का उल्लेख मिलता है, इसमें दस अध्ययन प्रकीर्णक-जो अर्हन्त के उपदिष्ट श्रुत के आधार पर श्रमण निर्ग्रन्थ ग्रन्थों का निर्माण करते हैं, उन्हें प्रकीर्णक कहते हैं। भगवान ऋषभदेव से लेकर श्रमण भगवान महावीर तक जितने भी साधु हुए हैं, उन्होंने श्रुत के अनुसार अपने वचन कौशल से, तथा अपने ज्ञान को विकसित करने के लिए, निर्जरा के उद्देश्य से, सर्व साधारणजन भी सुगमता से धर्म एवं विकासोन्मुख हो सकें, इस उद्देश्य से जो ग्रन्थ रचे गए हैं, उन्हें प्रकीर्णक संज्ञा दी गई है। सारांश इतना ही है। तीर्थ में प्रकीर्णक अपरिमित होते हैं। जिज्ञासुओं को इस विषय का विशेष ज्ञान वृत्ति और चूर्णि से करना चाहिए ।। सूत्र 44 ।। अंगप्रविष्टश्रुत मूलम्-से किं तं अंगपविठं ? अंगपविठं दुवालसविहं पण्णत्तं, तं जहा-१. आयारो, २. सूयगडो, ३. ठाणं, ४. समवाओ, ५. विवाहपन्नत्ती, ६. नायाधम्मकहाओ, ७. उवासगदसाओ, ८. अंतगडदसाओ, ९. अणुत्तरोववाइअदसाओ, १०. पण्हावागरणाइं, ११. विवागसुअं, १२. दिट्ठिवाओ ॥ सूत्र ४५ ॥ .. छाया-अथ किं तदंगप्रविष्टम् ? अंगप्रविष्टं द्वादशविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा १. आचारः, २. सूत्रकृतः, ३. स्थानम्, ४. समवायः, ५. व्याख्याप्रज्ञप्तिः, ६. ज्ञाताधर्मकथाः, ७. उपासकदशाः, ८. अन्तकृद्दशाः, ९. अनुत्तरौपपातिकदशाः, १०. प्रश्नव्याकरणानि, ११. विपाकश्रुतम्, १२. दृष्टिवादः॥ सूत्र ४५ ॥ भावार्थ-शिष्य ने प्रश्न किया-भगवन् ! वह अंगप्रविष्ट-श्रुत कितने प्रकार का है ? आचार्य ने उत्तर दिया-अंगप्रविष्ट-श्रुत बारह प्रकार का वर्णन किया गया है, जैसे १. श्रीआचारांगसूत्र, २. श्रीसूत्रकृतांगसूत्र, ३. श्रीस्थानांगसूत्र, ४. श्रीसमवायांगसूत्र, ५. श्रीव्याख्याप्रज्ञप्ति-भगवतीसूत्र, ६. श्री ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र, ७. श्री उपासकदशांग सूत्र, ८. श्री अन्तकृद्दशांग सूत्र, ९. श्री अनुत्तरौपपातिकदशांगसूत्र, १०. श्रीप्रश्नव्याकरणसूत्र, ११. श्रीविपाकसूत्र, १२. श्रीदृष्टिवादांगसूत्र ॥ सूत्र ४५ ॥ ___टीका-इस सूत्र में अंगप्रविष्ट सूत्रों के नामों का उल्लेख किया गया है। इन अंगप्रविष्ट सूत्रों में क्या-क्या विषय है, सूत्रकार इसका स्वयं अग्रिम सूत्रों में क्रमशः विवरण सहित परिचय देंगे, जिससे जिज्ञासुओं को सुगमता से सभी अंग सूत्रों के विषय का सामान्यतया ज्ञान हो सकेगा ।। सूत्र 45 ।। *431
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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