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________________ 65536 को पण्णट्ठी से गुणा करने पर जो गुणन फल निकलता है, उसे वादाल कहते हैं। उसकी संख्या यह है-4294967296 । वादाल को वादाल से गुणा करने पर जो गुणनफल निकले, उसे एकट्ठी कहते हैं, जैसे कि 18446744073709551616 । केवलज्ञान के अविभाग प्रतिच्छेदों में एक कम एकट्ठी का भाग देने से जो लब्ध आए, उतने अविभाग प्रतिच्छेदों के समूह को अक्षर कहते हैं। इस अक्षर परिमाण में अनन्त का भाग देने से जितने अभिभाग प्रतिच्छेद लब्ध आएं, उतने अविभाग प्रतिच्छेद पर्याय ज्ञान में पाए जाते हैं। वे नित्योद्घाटित हैं।" यह सादि-सान्त, अनादि अनन्तश्रुत का विवरण सम्पूर्ण हुआ ।। सूत्र 43 ।। . ११-१२-१३-१४. गमिक-अगमिक, अंगप्रविष्ट-अंगबाहिर मूलम्-से किं तं गमिअं? गमिअं दिठिवाओ। से किं तं अगमिअं? अगमिअं-कालिअंसुओं से त्तं गमिअं, से त्तं अगमिओ अहवा तं समासओ दुविहं पण्णत्तं, तं जहा-अंगपविट्ठ १ अंगबाहिरं च २। से किंतं अंगबाहिरं? अंगबाहिरं दुविहं पण्णत्तं, तंजहा-१. आवस्सयं च २. आवस्सय-वइरित्तं च। १. से किं तं आवस्सयं ? आवस्सयं छव्विहं पण्णत्तं, तं जहा १. सामाइयं, २. चउवीसत्थओ, ३. वंदणयं, ४. पडिक्कमणं, ५. काउस्सग्गो, ६. पच्चक्खाणं-से त्तं आवस्सयं। छाया-११. अथ किन्तद् गमिकम्? गमिकं दृष्टिवादः। १२. अथ किन्तदगमिकम्? अगमिकंकालिकं श्रुतम्, तदेतद्गमिकम् तदेतदगमिकम्। अथवा तत्समासतो द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा-१३-१४, अंगप्रविष्टम् १, अंगबाह्यञ्च २॥ अथ किंतद्-अंगबाह्यम्? अंगबाह्यं द्विविधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा- . १. आवश्यकञ्च, २. आवश्यकव्यतिरिक्तञ्च। १. अथ किंतदावश्यकम्? आवश्यकं षड्विधं प्रज्ञप्तं, तद्यथा १. सामायिकं, २.चतुर्विंशतिस्तवः, ३. वन्दनकं, ४. प्रतिक्रमणं, ५. कायोत्सर्गः, ६. प्रत्याख्यानं, तदेतदावश्यकम्। भावार्थ-शिष्य ने पूछा-भगवन्! वह गमिक-श्रुत क्या है? आचार्य उत्तर में कहने लगे-गमिक-श्रुत आदि, मध्य और अवसान में कुछ विशेषता से उसी सूत्र को बारम्बार कहना गमिक-श्रुत है, दृष्टिवाद गमिक-श्रुत है। . * 422 * -
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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