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१. ऊससियं-नीससियं, निच्छूढं-खासियं च छीयं च ।
निस्सिंघिय-मणुसारं, अणक्खरं छेलिआईअं ॥८८॥
से त्तं अणक्खरसुअं ॥ सूत्र ३९ ॥ छाया-१. अथ किं तदनक्षर-श्रुतम्? अनक्षरश्रुतमनेकविध प्रज्ञप्तं, तद्यथा
उच्छ्वसितं-निश्श्वसितं, निष्ठ्यूतं काशितञ्च क्षुतञ्च। निस्सिङ्घित-मनुस्वार-मनक्षरं सेटितादिकम् ॥ ८८ ॥
तदेतदनक्षर-श्रुतम् ॥ सूत्र ३९॥ से किं तं अणक्खरसुअं?-अथ वह अनक्षरश्रुत कितने प्रकार का है? अणक्खरसुअंअनक्षरश्रुत, अणेगविहं-अनेक प्रकार का, पण्णत्तं-प्रतिपादन किया गया है, तं जहा-जैसे
ऊससियं-उच्छ्वसित, नीससियं-निच्छ्वसित, निच्छूट-थूकना और, खासियं-खांसना, छीयं च-तथा छींकना, निस्सिंघियमणुसारं-निः सिंघना नाक साफ करने की ध्वनि और अनुस्वार की भान्ति चेष्टा करना, छेलियाइयं-सेटित आदिक, अणक्खरं-अनक्षर श्रुत है, से त्तं अणक्खरसुअं-इस प्रकार का अनक्षर श्रुत है।
भावार्थ-शिष्य ने फिर पूछा-वह अनक्षरश्रुत कितने प्रकार का है?
गुरुजी ने उत्तर दिया-अनक्षरश्रुत अनेक तरह से वर्णित है, जैसे-ऊपर को श्वास . लेना, नीचे श्वास लेना, थूकना, खांसना, छींकना, निःसिंघना, अर्थात् नाक साफ करने की ध्वनि और अनुस्वार युक्त चेष्टा करना। यह सभी अनक्षरश्रुत है ॥ सूत्र ३९ ॥ ___टीका-उपरोक्त सूत्र में अक्षरश्रुत और अनक्षरश्रुत का वर्णन किया गया है। क्षर् संचलने' धातु से अक्षर शब्द बनता है, जैसे कि न क्षरति न चलति-इत्यक्षरम्-अर्थात् ज्ञान का नाम अक्षर है, ज्ञान जीव का स्वभाव है। कोई भी द्रव्य अपने स्वभाव से विचलित नहीं होता। जीव भी एक द्रव्य है, जो उसका स्वभाव तथा गुण है वह जीव के अतिरिक्त अन्य किसी द्रव्य में नहीं पाया जाता। जो अन्य गुण स्वभाव हैं, वे जीव में नहीं पाए जाते। ज्ञान आत्मा से कभी भी नहीं हटता, सुषुप्ति अवस्था में भी जीव का स्वभाव होने से वह ज्ञान रहता ही है। उस भावाक्षर के कारण श्रुतज्ञान ही अक्षर है। यहां भावाक्षर का कारण होने से 'अकार' आदि को भी उपचार से अक्षर कहा जाता है।, अक्षर श्रुत, भावश्रुत का कारण है। भावश्रुत को लब्धि-अक्षर भी कहते हैं। संज्ञाक्षर और व्यंजनाक्षर ये दोनों द्रव्यश्रुत में अन्तर्भूत होते हैं अतः सूत्रकर्ता ने अक्षरश्रुत के तीन भेद किए हैं। जैसे कि संज्ञाक्षर, व्यंजनाक्षर और लब्ध्यक्षर। ___ संज्ञाक्षर-जो अक्षर की आकृति, संस्थान, बनावट है, जिसके द्वारा यह जाना जाए कि यह अमुक अक्षर है, वह संज्ञाक्षर कहलाता है। विश्व में जितनी लिपियां प्रसिद्ध हैं, उदाहरण के रूप में जैसे कि अ, आ, इ ई, उ ऊ इत्यादि तथा A.B.C. D इत्यादि। इसी प्रकार अन्य-अन्य लिपियों के विषय में भी समझना चाहिए।
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