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१. आभोगनता-अर्थावग्रह के अनन्तर सद्भूत अर्थ विशेष के अभिमुख पर्यालोचन को आभोगनता कहते हैं-जैसे कहा भी है-"अर्थावग्रहसमनन्तरमेवसद्भूतार्थविशेषाभिमुखमालोचनं तस्य भाव आभोगनता।"
२. मार्गणता-अन्वय व्यतिरेक धर्म के द्वारा पदार्थों के अन्वेषण करने को मार्गणा कहते हैं। कहा भी हैं-मार्यतऽनेनेति मार्गणं, सद्भूतार्थविशेषाभिमुखमेवतदूर्ध्वमन्वयव्यतिरेकधर्मान्वेषणं तद्भावो मार्गणता।
३. गवेषणता-व्यतिरेक धर्म को त्याग कर, अन्वय धर्म के साथ पदार्थों के पर्यालोचन करने को गवेषणता कहते हैं, जैसे कि कहा भी है- “गवेष्यतेऽनेनेति गवेषणं, तत ऊर्ध्वंसद्भूतार्थविशेषाभिमुखमेव व्यतिरेकधर्मत्यागतोऽन्वयधर्माध्यासालोचनं तद्भावो गवेषणता।"
४. चिन्ता-पुनः पुनः विशिष्ट क्षयोपशम से स्वधर्मानुगत सद्भूतार्थ के विशेष चिंतन को चिन्ता कहते हैं, जैसे कि कहा भी है-“ततो मुहुर्मुहुः क्षयोपशमविशेषतः स्वधर्मानुगतसद्भूतार्थविशेष चिन्तनं चिन्ता।"
५. विमर्श-क्षयोपशम विशेष से स्पष्टतर सद्भतार्थ के अभिमुख, व्यतिरेक धर्म के त्याग करने से अन्वय धर्म के अपरित्याग से स्पष्टतया विचार करना विमर्श कहलाता है, जैसे कि कहा भी है-“तत ऊर्ध्वं क्षयोपशमविशेषात् स्पष्टतरं सद्भूतार्थविशेषाभिमुखमेव व्यतिरेकधर्मपरित्यागतोऽन्वयधर्मापरित्यागतोऽन्वयधर्मविमर्शनं विमर्शः।" इस प्रकार ईहा . के पर्यायान्तर नाम व्युत्पत्ति के साथ कहे गए हैं ।। सूत्र 32 ।।
३. अवाय मूलम्-से किंतं अवाए ? अवाए छविहे पण्णत्ते, तं जहा-१.सोइंदियअवाए, २. चक्खिंदिय-अवाए, ३. घाणिंदिय- अवाए, ४. जिब्भिंदिय-अवाए, ५.फासिंदिय-अवाए, ६. नो इंदिय-अवाए। तस्स णं इमे एगठ्ठिया नाणा घोसा, नाणा वंजणा पंच नामधिज्जा भवंति, तं जहा-१. आउट्टणया, २. पच्चाउट्टणया, ३. अवाए, ४. बुद्धी, ५. विण्णाणे, से त्तं अवाए ॥ सूत्र ३३ ॥
- छाया-अथ कः सोऽवायः? अवायः षड्विधः प्रज्ञप्तः तद्यथा-१. श्रोत्रेन्द्रिय-अवायः २. चक्षुरिन्द्रिय-अवायः, ३. घ्राणेन्द्रिय-अवायः, ४. जिह्वेन्द्रिय-अवायः ५. स्पर्शेन्द्रियअवायः। तस्य इमानि एकार्थिकानि नानाघोषाणि, नानाव्यञ्जनानि पञ्च नामधेयानि भवन्ति, तद्यथा- १. आवर्त्तनता, २. प्रत्यावर्त्तनता, ३. अवायः (अपायः), ४. बुद्धिः, ५. विज्ञानं, स एषोऽवायः ॥ सूत्र ३३ ॥ पदार्थ-से किं तं अवाए-वह अवाय कितने प्रकार है?, अवाए छव्विहे-अवाय छ
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