________________
मान्य आगम प्रचुर मात्रा में थे तथा अन्य साहित्य भी। इससे यह सिद्ध होता है कि श्वेताम्बर आगम प्राचीन हैं, जबकि दिगम्बर मान्य षटखण्डागम आदि आगम अर्वाचीन हैं।
उमास्वाति जी का समय वीर निर्वाण सं. 5वीं शती का होना विद्वान् मानते हैं और कुछ एक विद्वान् विक्रम सं. 5वीं-छठी शती को स्वीकार करते हैं, वास्तव में वे किस शती में हुए हैं यह अभी रिसर्च का विषय है, ऐसी तरंग एक बार सिद्धसेन दिवाकर जी के मन में भी उठी थी कि सभी आगमों को तत्वार्थसूत्र की तरह संस्कृत भाषा में सूत्र रूप में निर्माण करूं, किन्तु इसके लिए समाज और उनके गुरु सहमत नहीं हुए, प्रत्युत उन्हें ऐसी भावना लाने का प्रायश्चित करना पड़ा। ___नन्दीसूत्र की हिन्दी व्याख्या का आचार्य प्रवर जी ने उपाध्याय के युग में ही लेखन कार्य प्रारंभ करके उसकी इति श्री की है। आप का शरीर वार्धक्य के कारण अस्वस्थ एवं दुर्बल अवश्य हो गया था, फिर भी धारणा शक्ति और स्मृति सदा सरस ही रही है। उनमें वार्धक्य का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा। नेत्रों की ज्योति कम होने से आगमों का स्वाध्याय कण्ठस्थ और श्रवण से करते रहे हैं। आपकी आगमों पर अगाध श्रद्धा एवं रुचि थी। इन दृष्टियों से आचार्य प्रवर जी श्रुतज्ञान के आराधक ही रहे हैं। कब? कहां? क्या लाभ हुआ? : जन्म-पंजाब प्रान्त जिला जालंधर के अन्तर्गत "राहों" नगरी में क्षत्रिय कुल मुकुट, चोपड़ा वंशज सेठ मनसाराम जी की धर्मपत्नी परमेश्वरी देवी की कुक्षि से वि.सं. 1939 भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष, द्वादशी तिथि, शुभ मुहूर्त में एक होनहार पुण्य आत्मा का जन्म हुआ। नवजात शिशु का माता-पिता ने जन्मोत्सव मनाया। अन्य किसी दिन नवजात कुलदीपक का नाम आत्माराम रखा गया। शरीर संपदा से जनता को ऐसा प्रतीत होता था, मानो कि देवलोक से च्यव कर कोई देव आए हैं।
दैवयोग से शैशवकाल में ही क्रमशः माता-पिता का साया सिर से उठ गया। कुछ वर्षों तक आप की दादी ने आप का भरण-पोषण किया, तत्पश्चात् वृद्धावस्था होने से उनका भी निधन हो गया। कुछ महीने इधर-उधर रिश्तेदारों के यहां कालक्षेप किया। मन कहीं न लगने से लुधियाना में निकटतर सम्बन्धियों के यहां पहुंचे। किन्तु वहां भी मन न लगने से कुछ सोच ही रहे थे कि अकस्मात् वकील सोहनलाल जी उपाश्रय में विराजित मुनिवरों के दर्शनार्थ जाते हुए मिल गए, उनसे पूछा-"आप कहां जा रहे हैं ?" वकील जी ने कहा-"मैं पूज्यवर श्री मोतीराम जी महाराज के दर्शनार्थ जा रहा हूं, क्या तुम्हें भी साथ चलना है ?" आत्माराम जी ने कहा “यदि मुझे भी उनके दर्शन कराओ तो आपकी बड़ी मेहरबानी होगी" इतना कहकर दोनों चल पड़े। __ . उपाश्रय में मुनिवरों के दर्शन किए। दर्शन करते ही मन आनन्द से भर गया। पूज्य श्री
*21*