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संयत, असंयत और संयतासंयत
जो सर्व प्रकार से विरत हैं तथा चारित्र मोहनीय कर्म के क्षयोपशम के कारण जिनको सर्व विरति रूप चारित्र की प्राप्ति हो गई है, उन्हें संयत कहते हैं। जिनका कोई नियम- प्रत्याख्यान नहीं है, जो चतुर्थ गुणस्थान में अवस्थित, अविरति सम्यग्दृष्टि हैं उन्हें असंयत कहते हैं। यद्यपि असंयत मिथ्यादृष्टि और मिश्रदृष्टि भी होते हैं, किन्तु पिछले सूत्र में उनका निषेध किया है। अतः यहां असंयत का आशय अविरत सम्यग्दृष्टि मनुष्य से है। संयतासंचत सम्यग्दृष्टि मनुष्य श्रावक होते हैं। क्योंकि उनका प्राणातिपात आदि पाँच आश्रवों का देश (अंश) रूप से त्याग होता है, सर्वथा नहीं। संयतादि को क्रमशः विरत, अविरत, विरताविरत, पण्डित, बाल, बालपण्डित, पच्चक्खाणी, अपच्चक्खाणी, पच्चक्खाणापच्चक्खाणी भी कहते हैं। सारांश इतना ही है कि मनःपर्यव ज्ञान सर्वविरतियों को ही उत्पन्न हो सकता है, अन्य को नहीं।
मूलम् - जइ संजय-सम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमियगब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं, किं पमत्तसंजय - सम्मदिट्ठि-पज्जत्तगसंखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतिय- मणुस्साणं, अप्पमत्तसंजयसम्मदिट्ठि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय-कम्मभूमिय- गब्भवक्कंतिय मस्साणं ? गोयमा ! अप्पमत्तसंजय - सम्मदिवि-पज्जत्तग-संखेज्जवासाउयकम्मभूमिय- गब्भवक्कंतिय मणुस्साणं, नो पमत्तसंजय - सम्मदिट्ठिपज्जत्तग-संखेज्जवासाउय - कम्मभूमिय- गब्भवक्कंतिय - मणुस्साणं ।
छाया - यदि संयतसम्यग्दृष्टि- पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्क-कर्मभूमिजगर्भव्युत्क्रान्तिक- मनुष्याणां किं प्रमत्तसंयत- सम्यग्दृष्टि- पर्याप्तक-संख्येयर्षायुष्ककर्मभूमिज-गर्भव्युत्क्रान्तिक मनुष्याणाम्, अप्रमत्तसंयत-सम्यग्दृष्टि- पर्याप्तकसंख्येयवर्षायुष्क-कर्मभूमिज - गर्भव्युत्क्रान्तिक- मनुष्याणाम् ? गौतम ! अप्रमत्तसंयतसम्यग्दृष्टि - पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्क-कर्मभूमिज - गर्भव्युक्रान्तिक- मनुष्याणां, नो प्रमत्तसंयत- सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक-संख्येयवर्षायुष्क- कर्मभूमिज-गर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्याणाम्।
पदार्थ - जइ - यदि, संजय - सम्मदिट्ठि - पज्जत्तग- संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक, संखेज्जवासाउय-संख्यातवर्ष आयुष्य वाले, कम्मभूमिय-गब्भवक्कंतिय-कर्मभूमिज गर्भज, मणुस्साणं - मनुष्यों को, किं- क्या, पमत्तसंजय - प्रमत्तसंयत, सम्मदिट्ठि - सम्यग्दृष्टि, पज्जतग-पर्याप्त, संखेज्जवासाउय - कम्मभूमिय- संख्यातवर्ष आयुष्य कर्मभूमिज, गब्भवक्कंतिय-मणुस्साणं- गर्भज मनुष्यों को, अप्पमत्तसंजय - सम्मदिट्ठि - अप्रमत्तसंयत सम्यग्दृष्टि, पज्जत्तग-संखेज्जवासाउय - पर्याप्त संख्यातवर्ष आयुष्कं कम्मभूमिय
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