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दो युगों का प्रतिनिधित्व करता है । ईसा की चतुर्थ शताब्दी तक ज्ञानसिद्धान्त के संबंध में जो विकास हुआ, वह इसमें मिलता है।
. नंदीसूत्र में सम्यक् श्रुत और मिथ्याश्रुत का विभाजन भी दोनों दृष्टियां लिए हुए है। सर्वप्रथम आचारांग आदि जैन आगमों को सम्यक् श्रुत कहा गया और रामायण, महाभारत आदि जैनेतर साहित्य को मिथ्याश्रुत। तत्पश्चात् यह बताया गया कि जैनेतर साहित्य भी सम्यग्दृष्टि द्वारा गृहीत होने पर सम्यक् श्रुत कहा जाएगा और मिथ्यादृष्टि द्वारा गृहीत होने पर मिथ्याश्रुत, यह दृष्टि जैनपरंपरा की प्राचीन एवं मौलिक देन है। उसकी धारणा है कि वस्तु अपने आप में सम्यक् और मिथ्या नहीं होती । एक ही वस्तु सज्जन के पास जाने पर उपकारक बन जाती है और दुर्जन के पास जाने पर अपकारक । सज्जन उसे अच्छे काम में लगाता है, और दुर्जन बुरे काम में। तत्त्वार्थसूत्र में ज्ञान और अज्ञान का विभाजन इसी आधार पर गया है।
आचार्यश्री आत्माराम जी महाराज द्वारा अनुवादित नंदीसूत्र का संपादन आधुनिक शैली में किया गया है। प्रारंभ में विस्तृत भूमिका है जो ज्ञान चर्चा पर अच्छा प्रकाश डालती है। आशा है, इसी प्रकार अन्य सूत्रों का संपादन भी किया जाएगा। अंत में मैं दिवंगत आचार्यश्री जी के प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धा एवं भक्ति प्रकट करता हूं।
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शुभाकांक्षी आचार्य आनंद ऋषि