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________________ र उदारमना सहयोगी श्री नेमचन्द जी जैन | श्रीमती पुष्पा जैन श्री नेमचन्द जी जैन मंगल देशान्तर्गत सरदूलगढ़ मण्डी (पंजाब) के प्रसिद्ध व्यवसायी और मान्य श्रावक हैं। आप वस्त्र और आढ़त के व्यापार से जुड़े हैं। व्यापार में प्रामाणिकता और सत्यनिष्ठा प्रारंभ से ही आपके जीवन की पहचान रही है। उसी के बल पर व्यापारिक क्षेत्र में आपने पर्याप्त सुयश अर्जित किया है। _____ बाल्यकाल से ही जैन धर्म के संस्कारों से आपका जीवन पूर्ण रहा है। आपके पूज्य पिता स्व. श्री हंसराज जी जैन सरदूलगढ़ मण्डी के एक प्रतिष्ठित श्रावकरन थे। सामायिक, संवर और गुरूजनों के प्रति उनमें अटूट आस्था थी। पूज्य पिता के धर्म संस्कार आपको विरासत में प्राप्त हुए। नियमित रूप से धर्मध्यान करना और संतों-साध्वियों की सेवा में सदा सबसे आगे रहना आपका जन्मना स्वभाव है। आप स्वभाव से ही उदार हैं। समाज सेवा और जनसेवा में सदैव समर्पित रहते हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती पण्या जैन एक आदर्श श्राविका हैं। तप और सेवा में उनकी सर्वाधिक रुचि है। उन्होंने कई अठाइयां और कई उससे भी बड़ी तपस्याएं की हैं। तपस्या में उनकी शांति और सरलता श्रद्धा का विषय हैं। विशेष उल्लेखनीय है कि श्रीमती पुष्पा जैन, भाबू कुल गौरव जैन धर्म दिवाकर आचार्य सम्राट् श्री शिव मुनि जी म० की सहोदरा हैं। जैसे आचार्य प्रवर का जीवन तप, स्वाध्याय और ध्यान का संगमतीर्थ है, वैसे ही उनकी सहोदरा (बहन) का जीवन भी पावन संगम तीर्थ है। उनकी समता.सरलता और उदारता को शब्दांकित करना संभव नहीं है। श्रावकरत्न श्री नेमचन्द जी जैन एवं श्रीमती पुष्पा बहन के तीन पुत्र हैं-(१) श्री तरसेम कुमार जैन 'सेमी' (२) श्री प्रेम कुमार जैन 'प्रेमी' (३) श्री संजीव कुमार जैन । एक सुपुत्री हैं - श्रीमती स्वीटी जैन (धर्मपत्नी श्री अभय कुमार जैन संगरिया, राज.) आपका पुत्र, पुत्री, पौत्र, पौत्री और दोहित्र आदि समस्त परिवार विशुद्ध जैन संस्कारों से रंगा हुआ है। ऐसे जैन परिवार जैन जगत की शोभा हैं। उदारमना श्री नेमचन्द जी जैन अपने पूज्य पिता धर्मप्राण श्रेष्ठी श्री हंसराज जी जैन की पुण्य स्मृति में प्रस्तुत आगम श्री नन्दी सूत्रम् प्रकाशित कराके जैन समाज को भेंट कर रहे हैं।
SR No.002205
Book TitleNandi Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherBhagwan Mahavir Meditation and Research Center
Publication Year2004
Total Pages546
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_nandisutra
File Size12 MB
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