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जिन शासन का उद्देश्य किसी सम्प्रदाय, आश्रम, वर्ण जाति आदि को दबाने का तथा नष्ट-भ्रष्ट करने का नहीं रहा, और न रहेगा, यह विशेषता इसी में है, अन्य किसी शासन में नहीं। क्योंकि इसका अनेकान्तवाद बौद्धिक मतभेद को मिटाता है। जो इसकी अहिंसा है, वह विश्वमैत्री सिखाती है। इसका अपरिग्रहवाद (अनावश्यक वस्तुओं का संग्रह न करना) जनता, देश व राष्ट्र में विषमता के स्थान पर समता सिखाता है। इसका सत्य आत्मा को परमात्मतत्व की ओर प्रगति करने के लिए अपूर्व एवं अद्भुत शक्ति प्रदान करता है। अखण्ड सत्यालोक में सर्वदा निवास करना ही परमात्मतत्व है। ऐसी अनेक दृष्टियों से यह जिन शासन पूर्ण सुख और असीम शान्तिप्रद है। - जैसे शरद, हेमन्त और शिशिर ऋतुओं का क्रमशः साम्राज्य छा जाने पर शाही उद्यान में वह शोभा, सौन्दर्य एवं सौरभ्य नहीं रहता जो कि वसन्तु ऋतु में हो सकता है। वैसे ही जिनशासन, चतुर्विध-तीर्थ व आगमों की जो शोभा, प्रभावना सुव्यवस्था और विश्वमोहिनी सुरभि, तीर्थंकर, गणधर तथा निर्वाण प्राप्त करने वाले अन्तिम चरमशरीरी पट्टधर आचार्य पर्यन्त होती है, वह कालान्तर में उतनी नहीं रहती। बल्कि प्रतिदिन उसका ह्रास ही होता जाता है। यद्यपि इतनी जल्दी ह्रास नहीं हो सकता, जितनी जल्दी हो गया है, इसके पीछे अनेक विशेष कारण हो सकते हैं। जैसे कि१. भस्मराशि महाग्रह : जैन आगमों में 88 महाग्रहों के नामोल्लेख स्पष्टरूप से मिलते हैं। आजकल जो नौ महाग्रह प्रचलित हैं, उन सबका अन्तर्भाव 88 में ही हो जाता है। नवग्रहों के अतिरिक्त जो शेष ग्रह हैं, उनका प्रभाव अधिकतर उन पर पड़ता है, जिनकी आयु सैंकड़ों हजारों तथा लाखों वर्ष की हो या इतने काल तक किसी विशिष्ट महामानव की स्थापित संस्था पर अच्छा-बुरा प्रभाव डालते हैं।
. जिस रात्रि में श्रमण भगवान महावीर का निर्वाण हुआ है। निर्वाण होने से पूर्व उसी रात्रि को क्रूरस्वभाव वाले भस्मराशि नामक तीसवें महाग्रह का भगवान के जन्म नक्षत्र उत्तराफाल्गुनी के साथ योग लगा। वह महाग्रह दो हजार वर्ष की स्थिति वाला है। क्योंकि एक नक्षत्र पर वह इतने काल तक ही फल दे सकता है, किन्तु किसी महातेजस्वी के पुण्य प्रभाव से उसका होने वाला बुरा फल निस्तेज एवं नीरस भी हो जाता है।
अन्य किसी समय निर्वाण होने से पूर्व श्रमण भगवान महावीर से शक्रेन्द्र ने निवेदन किया, भगवन् ! आपके जन्म नक्षत्र पर भस्मराशि महाग्रह संक्रमित होने वाला है। यह महाग्रह आपके द्वारा प्रवृत्त शासन को बहुत हानि पहुंचाएगा। अतः कृपा करके यदि आप अपनी आयु को मात्र दो घड़ी और बढ़ा दें तो आपके शासन पर जो दो हजार वर्ष तक वह
1. स्थानांग सूत्र स्था. 2, उ. 3