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प्रकाशकीय
उत्तराध्ययन सूत्रम् भाग तृतीय आपके हाथों में है। आत्म- ज्ञान- श्रमण- शिव आगम प्रकाशन समिति के तत्वावधान में प्रकाशित होने वाला यह पंचम आगम पुष्प है। समिति का यह पूर्ण प्रयास रहा है कि प्रकाशित होने वाले आगम सर्वभांति से सुन्दर हों। अपने इस प्रयास में हम सफल रहे हैं। इसके पीछे समिति की कार्यनिष्ठा और आचार्य सम्राट् श्री आत्माराम जी म. व आचार्य सम्राट् श्री शिवमुनि जी महाराज का आशीर्वाद तथा श्रमण श्रेष्ठ कर्मठ योगी श्री शिरीष मुनि जी महाराज के सतत सम्यक् दिशा निर्देशन की प्रमुख भूमिका रही है।.
.. जैन धर्म दिवाकर आचार्य सम्राट् श्री आत्माराम जी महाराज की साहित्य-साधना समग्र जैन जगत में विश्रुत है। उन जैसे आगमों के पारगामी मनीषी बहुत कम हुए हैं। आगमों के भाष्यों के क्षेत्र में वे अपनी मिशाल स्वयं हैं। आगम जैसे गूढ विषय का जैसा सरल सम्पादन/टीकाकरण उन्होनें किया वह अद्भुत और आश्चर्य चकित कर देने वाला है। आचार्य श्री की सरल साधुता उनके द्वारा उल्लिखित एक-एक शब्द में सहज ही ध्वनित हो रही है।
श्रमण संघ के चतुर्थ पट्टधर महामहिम आचार्य सम्राट् श्री शिवमुनि जी महाराज अपने बाबा गुरू की पुण्यमयी परम्परा धारा को आगे बढ़ा रहे हैं। बृहद् संघीय दायित्वों के निर्वहन के साथ- साथ आप श्री आगम संपादन के कार्य को निरन्तर समय दे रहे हैं। यह आपकी अद्भुत श्रम साधना का एक प्रमाण है।
प्रस्तुत आगम का प्रकाशन व्यय श्री सुशील कुमार जी की पुण्य स्मृति में उनके परिवार द्वारा संवहन किया गया है। श्री सुशील कुमार जी जैन जगत के एक प्रतिष्ठित और सम्माननीय व्यक्तित्व थे। उनके धर्ममय संस्कार उनके परिवार में भी यथारूप विद्यमान हैं। आगम प्रकाशन समिति इस परिवार का हृदय से धन्यवाद ज्ञापन करती है।
विनीत आत्म-ज्ञान-श्रमण-शिव आगम प्रकाशन समिति (लुधियाना) भगवान महावीर रिसर्च एण्ड मेडिटेशन सेंटर ट्रस्ट (नई दिल्ली)
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