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________________ असङ्ख्यभागः पल्योपमस्य, उत्कर्षेण तु साधिका । पूर्वकोटिपृथक्त्वेन, अन्तर्मुहूर्त्त जघन्यका ॥ १९१ ॥ कायस्थितिः खेचराणाम्, पदार्थान्वयः-पलियस्स-पल्योपम का, असंखभागो-असंख्यातवां भाग, साहिया-अधिक, पुव्वकोडिपुहुत्तेणं-पृथक् पूर्वकोटि की, उक्कोसेण-उत्कृष्टता से, कायठिई-कायस्थिति, खहयराणं-खेचरों की वर्णन की गई है, और, जहन्निया-जघन्य स्थिति, अंतोमुहुत्तं-अन्तर्मुहूर्त की है, उ-प्राग्वत्। मूलार्थ-खेचर जीवों की जघन्य काय-स्थिति अन्तर्मुहूर्त की है और उत्कृष्ट, पल्योपम के असंख्येय भाग अधिक पृथक् पूर्व कोटि की कथन की गई है। टीका-यदि खेचर जीव मरकर खेचर में ही जन्मता-मरता रहे तो कम से कम वह अन्तर्मुहूर्त प्रमाण अपनी काया में स्थिति कर सकता है और अधिक से अधिक पल्योपम के असंख्येय भाग खेचर जीव सहित पृथक् (२ से ९) पूर्व कोटि तक अपनी काया में स्थिति कर सकता है। तात्पर्य यह है कि करोड़-करोड़ पूर्व के सात भन्न करके आठवां भव पल्योपम के असंख्येय भाग का युगलियों का कर लेता है, तदनन्तर वह खेचरभाव को छोड़कर देवगति को प्राप्त करता है। अब इनका अन्तराल बताते हैं, यथा अंतरं तेसिमं भवे । अणंतकालमुक्कोसं, अंतोमुहत्तं जहन्नयं ॥ १९२ ॥ अन्तरं तेषामिदं भवेत् । अनन्तकालमुत्कृष्टम्, अन्तर्मुहूर्तं जघन्यकम् ॥ १९२ ॥ पदार्थान्वयः-तेसिम-उन जीवों का यह, अंतरं-अन्तराल, भवे-है, उक्कोसं-उत्कृष्ट, अणंतकालं-अनन्तकाल, जहन्नयं-जघन्य, अंतोमुहुत्तं-अन्तर्मुहूर्त का है। मूलार्थ-खेचर जीवों का उत्कृष्ट अन्तरकाल अनन्तकाल का और जघन्य अन्तर्मुहूर्त का है। टीका-इस गाथा की व्याख्या पीछे अनेक बार की जा चुकी है। अब अन्य प्रकार से इनके भेद बताते हैं, यथा- एएसिं वण्णओ चेव, गंधओ रसफासओ । संठाणादेसओ वावि, विहाणाई सहस्ससो ॥ १९३ ॥ एतेषां वर्णतश्चैव, गन्धतो रसस्पर्शतः । संस्थानादेशतो वापि, विधानानि सहस्रशः ॥ १९३ ॥ पदार्थान्वयः-एएसिं-इन जीवों के, वण्णओ-वर्ण से, च-और, गंधओ-गंध से, रसफासओ-रस और स्पर्श से, वा-तथा, संठाणादेसओ वावि-संस्थानादेश से भी, सहस्ससो-हजारों, विहाणाई-भेद हो जाते हैं। उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ४४९] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अन्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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