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फासओ लुक्खए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ. रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ४१ ॥ . स्पर्शतो रूक्षो यस्तु, भाज्यः स तु वर्णतः ।
गन्धतो रसतश्चैव, भाज्यः संस्थानतोऽपि च ॥ ४१ ॥ पदार्थान्वयः-फासओ-स्पर्श से, जे-जो, लुक्खए-रूक्ष है, भइए-भाज्य है, से-वह, उ-फिर, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गंध से, च-और, रसओ-रस से, य-तथा, संठाणओवि-संस्थान से भी, भइए-भाज्य होता है, उ-एव-पादपूर्ति के लिए हैं।
मूलार्थ-जो पुद्गल रूक्ष स्पर्श वाला है वह वर्ण से, गन्ध से, रस से तथा संस्थान से भी भजनायुक्त है।
टीका-रूक्ष स्पर्श वाले पुद्गल-स्कन्ध में वर्णादि १७ गुणों की भी यथा-संभव स्थिति होती है। इस प्रकार स्पर्श के कुल १३६ भेद होते हैं। . अब संस्थान के विषय में कहते हैं, यथा
परिमंडलसंठाणे, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥ ४२ ॥
परिमण्डलसंस्थानः, भाज्यः स तु वर्णतः ।
गन्धतो रसतश्चैव, भाज्यः स स्पर्शतोऽपि च ॥ ४२ ॥ . पदार्थान्वयः-परिमंडलसंठाणे-परिमंडल-संस्थान वाला जो पुद्गल-स्कन्ध है, से-वह, भइए-भाज्य है, उ-फिर, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गन्ध से, च-और, रसओ-रस से, य-तथा, फासओवि-स्पर्श से भी, भइए-भाज्य है, एव उ-पादपूर्ति के लिए है। .
मूलार्थ-परिमंडल संस्थान वाले पुद्गल-स्कन्ध में-पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श, इस प्रकार बीस गुणों की भजना होती है। इसकी व्याख्या भी पूर्ववत् ही जान लेनी चाहिए। . ...
अब वृत्त-संस्थान के विषय में कहते हैं. संठाणओ भवे वट्टे, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए से फासओवि य ॥४३ ॥
संस्थानतो भवेद् वृत्तः, भाज्यः स तु वर्णतः ।
गन्धतो रसतश्चैव, भाज्यः स स्पर्शतोऽपि च ॥ ४३ ॥ पदार्थान्वयः-संठाणओ-संस्थान से जो, वट्टे-वृत्ताकार से जो, भवे-हो, भइए-भाज्य है, से-वह, उ-फिर, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गंध से, च-और, रसओ-रस से, य-तथा, फासओवि-स्पर्श से भी, भइए-भाज्य है, एव उ-पादपूर्त्यर्थक हैं।
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ३७७] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं