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स्पर्शतो मृदुको यस्तु, भाज्यः स तु वर्णतः ।
गन्धतो रसतश्चैव, भाज्यः संस्थानतोऽपि च ॥ ३५ ॥ पदार्थान्वयः-फासओ-स्पर्श से, जे-जो, मउए-मृदु है, भइए-भाज्य है, से-वह, उ-फिर, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गंध से, च-और, रसओ-रस से, य-तथा, संठाणओवि-संस्थान से भी, भइए-भाज्य है, एव उ-इनका अर्थ पहले की तरह ही जानना चाहिए। . मूलार्थ-स्पर्श से जो पुद्गल-स्कन्ध मृदु अर्थात् कोमल स्पर्श वाला है वह वर्ण, गन्ध, रस और संस्थान से भी भजनायुक्त है।
टीका-मृदु स्पर्श वाले पुद्गल में भी वर्णादि १७ गुणों की भजना समझ लेनी चाहिए, अर्थात् मृदु स्पर्श की भांति इन गुणों की भी उसमें यथासंभव स्थिति होती है। अब गुरु स्पर्श के विषय में कहते हैं
फासओ गुरुए जे. उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ ‘रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३६ ॥ स्पर्शतो गुरुको यस्तु, भाज्यः स तु वर्णतः ।
गन्धओ रसतश्चैव, भाज्य: संस्थानतोऽपि च ॥ ३६ ॥ पदार्थान्वयः-फासओ-स्पर्श से, जे-जो, गुरुए-गुरु है, भइए-भाज्य है, से-वह, उ-फिर, वण्णओ-वण से, गंधओ-गन्ध से, च-और, रसओ-रस से, य-तथा, संठाणओवि-संस्थान से भी, भइए-भाज्य होता है, उ-एव-प्राग्वत्।
मूलार्थ-जो पुद्गल गुरु स्पर्श वाला है वह वर्ण, गन्ध, रस और संस्थान से भी भजनायुक्त है, अर्थात् उसमें वर्णादि १७ गुणों की यथासंभव स्थिति रहती है।
अब लघु स्पर्श के सम्बन्ध में कहते हैं..फासओ लहुए जे उ, भइए से उ वण्णओ ।
गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि य ॥ ३७ ॥
स्पर्शतो लघुको यस्तु, भाज्यः स तु वर्णतः ।
गन्धतो रसतश्चैव, भाज्यः संस्थानतोऽपि च ॥ ३७ ॥ पदार्थान्वयः-फासओ-स्पर्श से, जे-जो, लहुए-लघु है, से-वह, उ-फिर, भइए-भाज्य है, वण्णओ-वर्ण से, गंधओ-गन्ध से, च-और, रसओ-रस से, य-तथा, संठाणओवि-संस्थान से भी, भइए-भाज्य होता है, एव उ-पूर्ववत्। . मूलार्थ-स्पर्श से जो पुद्गल लघु है वह वर्ण से, गन्ध से, रस से, और संस्थान से भी भजना वाला होता है, अर्थात् वर्णादि १७ बोलों की उसमें भी भजना होती है।
अब शीत स्पर्श के विषय में कहते हैं
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ३७५] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अल्झयणं