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________________ मूलार्थ-रसरूप में परिणत होने वाले पुद्गल-द्रव्य के पांच भेद कहे गए हैं, यथा-तीखा, कड़वा, कसैला, खट्टा और मीठा। टीका-रस-परिणति में पुद्गल-द्रव्य पांच प्रकार से परिणत होता है। यदि सरल शब्दों में कहें तो पुद्गल में जो रस विद्यमान है उसके तिक्त, कटु, कषाय, अम्ल और मधुर, इस प्रकार पांच भेद हैं। १. मिर्च के समान तीक्ष्ण, २. नीम के तुल्य कड़का, ३. हरीतकी आदि के सदृश कसैला, ४. निम्बू आदि के समान खट्टा और ५. मिश्री आदि के तुल्य मीठा। ये पांच भेद रस के हैं, अर्थात् पुद्गलों में ये पांच रस होते हैं। अब स्पर्शविषयक वर्णन करते हैं, यथा फासओ परिणया जे उ, अट्ठहा ते पकित्तिया । कक्खडा मउया चेव, गरुया लहुया तहा ॥ १९ ॥ सीया उण्हा य निद्धा य, तहा लुक्खा य आहिया । इय फासपरिणया एए, पुग्गला समुदाहिया ॥ २० ॥ स्पर्शतः परिणता ये तु, अष्टधा ते प्रकीर्तिताः । कर्कशा मृदुकाश्चैव, गुरुका लघुकास्तथा ॥ १९ ॥ शीता उष्णाश्च स्निग्धाश्च, तथा रूक्षाश्चाख्याताः । इति स्पर्शपरिणता एते, पुद्गलाः समुदाहृताः ॥ २० ॥ पदार्थान्वयः-फासओ-स्पर्श से, जे-जो पुद्गल, उ-पादपूर्ति में है, परिणया-परिणत होने वाले हैं, ते-वे, अट्टहा-आठ प्रकार के, पकित्तिया-कथन किए गए हैं, यथा, कक्खडा-कर्कश-कठोर, मउया-मृदु-कोमल, गरुया-गुरु, च-और, लहुया-लघु, एव-निश्चय में, सीया-शीतल, उण्हा-उष्ण, य-और, निद्धा-स्निग्ध, तहा-तथा, लुक्खा -रूक्ष, आहिया-कहे हैं, इय-इस प्रकार, फासपरिणया-स्पर्शरूप से परिणत हुए, एए-ये, पुग्गला-पुद्गल-स्कन्ध और परमाणुरूप, समुदाहिया-सम्यक् प्रकार से कहे गए हैं। __मूलार्थ-स्पर्शरूप में परिणत होने वाले पुद्गलों के आठ भेद कहे गए हैं, यथा-कर्कश, मृदु, गुरु, लघु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्षा इस प्रकार पुद्गलों की स्पर्श-परिणति में आठ प्रकार के स्पर्श कहे गए हैं। ___टीका-इस गाथा-युग्म में पुद्गलों अर्थात् परमाणुओं में रहने वाले स्पर्श के आठ भेदों का उल्लेख किया गया है। तात्पर्य यह है कि वर्ण, गन्ध और रस की भांति पुद्गल-द्रव्य में जो स्पर्श गुण विद्यमान है, वह आठ प्रकार का माना गया है। यथा-१. कर्कश स्पर्श-पाषाण आदि के स्पर्श की तरह कठोर. २. मद स्पर्श-नवनीत आदि की तरह अत्यन्त कोमल. ३. गरु-स्वर्णादि की भांति गरुतायक्त-भारी स्पर्श, ४. लघ-तिनके आदि की तरह अत्यन्त हलका. ५. शीत स्पर्श-हिम आदि के तल्य अत्यन्त शीतल.६. उष्ण स्पर्श-अग्नि के सदश अत्यन्त गरम.७. स्निग्ध स्पर्श-घत-तैल आदि की भांति अत्यन्त चिकना, और ८. रूक्ष स्पर्श-भस्मादि के समान अत्यन्त रूखा। इस प्रकार स्पर्श गुण वाले पुद्गलों में ये आठ प्रकार के स्पर्श होते हैं। पुद्गल का लक्षण है पूर्ण और गलित होने वाला, अर्थात् जिसमें पूर्णता उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ३६८ ] जीवाजीवविभत्ती णाम छत्तीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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