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की गई है। तथा च किंचित् अम्ल-कषाय और माधुर्य-पूर्ण रस पद्मलेश्या का जानना चाहिए। अब शुक्ललेश्या के रस का उल्लेख करते हैं
खजूर-मुद्दियरसो, खीररसो खंड-सक्कररसो वा । एत्तो वि अणंतगुणो, रसो उ सुक्काए नायव्वो ॥ १५ ॥ खजूरमृद्वीकारसः क्षीररसः खण्डशर्करारसो वा ।
इतोऽप्यनन्तगुणः रसस्तु शुक्ललेश्याया ज्ञातव्यः ॥ १५ ॥ . पदार्थान्वयः-खज्जूर-खजूर और, मुद्दिय-मृद्वीका-दाख का, रसो-रस, वा-अथवा, खीररसो-क्षीर का रस, खंडसक्कररसो-खांड और शर्करा का रस-जैसा होता है, एत्तो वि-इससे भी, अणंतगुणो-अनन्तगुणा अधिक, रसो-रस, सुक्काए-शुक्ललेश्या का, नायव्वो-जानना चाहिए, उ-प्राग्वत्। ____ मूलार्थ-जैसा मधुर रस खजूर, दाख, दुग्ध, खांड और शर्करा का होता है, उससे भी अनन्तगुणा अधिक मधुरतापूर्ण रस शुक्ललेश्या का जानना चाहिए।
टीका-इस गाथा में अन्तिम शुक्ललेश्या के रस का वर्णन किया गया है। शुक्ललेश्या के रस के लिए जितने भी पदार्थों की उपमा दी गई है वे सब के सब माधुर्य रस से परिपूर्ण हैं, परन्तु शुक्ललेश्या का मधुर रस इन खजूरादि के रस की अपेक्षा अनन्तगुणा मधुर है। यहां पर शर्करा का अर्थ मिश्री है-[शर्करा काशादिप्रभवा]। इस प्रकार छओं लेश्याओं के रसों का संक्षिप्त वर्णन किया गया है। अब इस तीसरे गन्ध-द्वार में इन लेश्याओं की गन्ध का वर्णन किया जाता है, यथा
जह गोमड़स्स गंधो, सुणगमडस्स व जहा अहिमडस्स । एत्तो वि अणंतगुणो, लेसाणं अप्पसत्थाणं ॥ १६ ॥
यथा गोमृतकस्य गन्धः, शुनो मृतकस्य वा यथाऽहिमृतकस्य ।
इतोऽप्यनन्तगुणो, लेश्यानामप्रशस्तानाम् ॥ १६ ॥ पदार्थान्वयः-जह-यथा, गोमडस्स-मृतक गौ की, गंधो-गन्ध होती है, व-अथवा, सुणगमडस्स-मृतक श्वान की गन्ध होती है, जहा-जैसे, अहिमडस्स-मरे हुए सर्प की गन्ध होती है, एत्तो वि-इससे भी, अणंतगुणो-अनन्तगुणा अधिक बुरी गन्ध, अप्पसत्थाणं-अप्रशस्त, लेसाणं-लेश्याओं की होती है।
मूलार्थ-जैसी मृतक गौ की, अथवा मरे हुए कुत्ते और मरे हुए सर्प की गन्ध होती है, उससे भी अनन्तगुणा अधिक दुर्गन्ध अप्रशस्त लेश्याओं की होती है।
टीका-कृष्ण, नील और कापोत, ये तीन लेश्याएं अप्रशस्त अर्थात् अशुभ मानी गई हैं। इन तीनों लेश्याओं की गन्ध मरी हुई गौ, मरे हुए कुत्ते और मरे हुए सर्प की दुर्गन्ध की अपेक्षा अनंतगुणा अधिक
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ ३१६] लेसज्झयणं णाम चोत्तीसइमं अज्झयणं