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________________ संखंक-कुंदसंकासा, खीरपूरसमप्पभा । रययहारसंकासा, सुक्कलेसा उ वण्णओ ॥९॥ शङ्खाङ्ककुन्दसङ्काशा, क्षीरपूरसमप्रभा । रजतहारसङ्काशा, शुक्ललेश्या तु वर्णतः ॥ ९ ॥ पदार्थान्वयः-संख-शंख, अंक-मणिविशेष, कुंद-कुन्द-पुष्प के, संकासा-सदृश, खीर-पूर-दुग्ध की धारा के, समप्पभा-समान प्रभा वाली, रययहार-रजत-चांदी के हार के, संकासा-समान, सुक्कलेसा-शुक्ललेश्या, वण्णओ-वर्ण वाली, तु-जाननी चाहिए। मूलार्थ-शुक्ललेश्या का वर्ण शंख, अंक ( मणिविशेष), मुचकुन्द के पुष्प और दुग्ध-धार तथा रजत के हार के समान उज्ज्वल अर्थात् श्वेत होता है। टीका-शुक्ललेश्या का वर्ण शंख के समान धवल, अंक नामक रत्न और कुन्द-पुष्प के समान उज्ज्वल तथा क्षीर-धारा और रजत-हार के समान श्वेत होता है। किसी-किसी प्रति में 'खीरपूर' के स्थान पर 'खीरधार' का पाठ भी देखने में आता है। तात्पर्य यह है कि शुक्ललेश्या के परमाणु अत्यन्त उज्ज्वल और निष्कलंक होते हैं। यहां पर इतना और भी स्मरण रखना चाहिए कि लेश्याओं के रूपवर्णन में उदाहरणरूप से जो भिन्न-भिन्न जाति के अनेक पदार्थों का निर्देश किया गया है उसका तात्पर्य यह है कि जिज्ञासु को इस विषय का सुखपूर्वक बोध हो जाए, क्योंकि देशभेद से किसी-किसी वस्तु का बोध नहीं भी होता। एतदर्थ ही दयालु सूत्रकार ने भिन्न-भिन्न उदाहरण यहां पर दिए हैं। अब दूसरे रस-द्वार का निरूपण करते हैं जह कडुयतुंबगरसो, निंबरसो कडुयरोहिणिरसो वा । एत्तो वि अणंतगुणो, रसो य किण्हाए नायव्वो ॥ १० ॥ यथा कटुकतुम्बकरसः, निम्बरसः कटुकरोहिणीरसो वा। इतोऽप्यनन्तगुणः, रसश्च कृष्णाया ज्ञातव्यः ॥ १० ॥ पदार्थान्वयः-जह-यथा, कडुय-कटुक, तुंबगरसो-तुम्बक का रस, निंबरसो-नीम का रस, वा-अथवा, कडुयरोहिणिरसो-कटुरोहिणी का रस होता है, एत्तो वि-इससे भी, अणंतगुणो-अनन्तगुणा कटु, रसो-रस, किण्हाए-कृष्णलेश्या का, नायव्वो-जानना चाहिए, य-प्राग्वत्। मूलार्थ-जितना कटु रस कड़वे तूंबे, निम्ब और कटुरोहिणी' का होता है उससे भी अनन्तगुणा अधिक कटु रस कृष्णलेश्या का होता है। टीका-कड़वे तूंबे और नीम की कटुता प्रसिद्ध है, उसी प्रकार कटुरोहिणी (गिलोय) भी अत्यन्त १. यह ज्वरनाशक औषधिविशेष है। उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [३१३] लेसज्झयणं णाम चोत्तीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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