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टीका - इस गाथा की व्याख्या भी पूर्व की भांति ही जान लेनी चाहिए।
अब राग-द्वेष के त्याग से प्राप्त होने वाले गुण के विषय में कहते हैं
गंधे. विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण |
न लिप्पई भवमज्झे वि संतो, जलेण वा पोक्खरिणीपलासं ॥ ६० ॥
गन्धे विरक्तो मनुजो विशोकः, एतया दुःखौघपरम्परया । न लिप्यते भवमध्येऽपि सन्, जलेनेव पुष्करिणीपलाशम् ॥ ६० ॥
पदार्थान्वयः - गंधे - गन्ध रूप विषय से, विरत्तो - विरक्त, मणुओ- मनुज, विसोगो - शोक - रहित हुआ, एएण- इस, दुक्खोहपरंपरेण - दुःख- समूह की परम्परा से न लिप्पई - लिप्त नहीं होता, भवमज्झे वि संतो-संसार में रहता हुआ भी, वा- - जैसे, जलेण - जल से, पोक्खरिणीपलासं - कमल - पत्र लिप्त नहीं होता ।
मूलार्थ - जैसे जल में रहता हुआ भी कमल - पत्र जल से लिप्त नहीं होता, उसी प्रकार गन्धरूप विषय से विरक्त एवं शोकरहित मनुष्य संसार में रहता हुआ भी उक्त प्रकार की दुःखपरम्परा से लिप्त नहीं होता, अर्थात् राग-द्वेष से रहित होने पर उसको किसी प्रकार की भी सांसारिक दुःख - बाधा नहीं पहुँचती ।
टीका-विरक्त अर्थात् राग-द्वेष से रहित आत्मा ही शोक से रहित हो सकती है तथा गन्धादि विषयों में अनासक्त होने के कारण वह संसार में रहती हुई भी पद्मपत्र की तरह उससे अलिप्त रहती. है। तात्पर्य यह है कि उसका कर्मानुष्ठान किसी प्रकार से भी बन्ध का हेतु नहीं होता। इस प्रकार इन पूर्वोक्त १३ गाथाओं के द्वारा घ्राण-विषयक वर्णन किया गया है।'
अब शास्त्रकार रसना के विषय में कहते हैं, यथा
जिब्भाए रस गहणं वयंति, तं रागहेडं तु मणुन्नमाहु । तं दोसहेउं अमणुन्नमाहु, समो य जो तेसु स वीयरा ॥ ६१ ॥ जिह्वाया रसं ग्रहणं वदन्ति, तं रागहेतुं तु मनोज्ञमाहुः । तं द्वेषहेतुममनोज्ञमाहुः, समश्च यस्तेषु स वीतरागः ॥ ६१ ॥
पदार्थान्वयः - जिब्भाए - जिह्वा का, रसं - रस को, गहणं-ग्राह्य, वयंति - कहते हैं - तीर्थङ्करादि, तं - उस, मणुन्नं- मनोज्ञ को, रागहेउं राग का हेतु, आहु-कहा है, अमणुन्नं- अमनोज्ञ, तं- उस रस को, दोसउं - द्वेष का हेतु, आहु-कहा है, जो-जो, तेसु-उन दोनों प्रकार के रसों में, समो - समभाव रखता है, से - वह, वीयरागो - वीतराग होता है।
मूलार्थ - तीर्थंकरादि ने रस को जिह्वा का ग्राह्य कहा है, वह रस यदि मनोज्ञ अर्थात् मन के लिए आकर्षक हो तो वह राग का हेतु बन जाता है और अमनोज्ञ को द्वेष का कारण
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [२५५ ] पमायट्ठाणं बत्तीसइमं अज्झयणं