________________
पदार्थान्वयः - गाहा - गाथानामक, सोलसएहिं - सोलहवें अध्ययन में, तहा उसी प्रकार, असंजमम्मि - असंयम में, जे भिक्खू -जो भिक्षु, निच्चं सदैव, जयई- -यत्न रखता है, से न अच्छइ - वह नहीं ठहरता, मंडले- संसार में।
मूलार्थ - गाथानामक सोलहवें अध्ययन में तथा असंयम में जो भिक्षु यत्न रखता है, वह इस संसार में नहीं ठहरता अर्थात् उसका संसारभ्रमण मिट जाता है।
टीका - जो गाई जाए तथा जिसमें स्व और पर समय के स्वरूप को शब्दों के द्वारा गाया जाए, उसको गाथा कहते हैं। सूयगड़ांग - सूत्र के प्रथम श्रुत स्कन्ध के सोलहवें अध्ययन को भी गाथा - अध्ययन कहते हैं तथा भीमसेनन्याय से गाथा - अध्ययन को गाथा भी कहा जाता है। उपचार से १६ अध्ययनों की ही गाथा संज्ञा प्रसिद्ध हो गई है। उनके नाम इस प्रकार हैं - १. स्वसमय - परसमय, २. वैदारिक, ३. उपसर्ग-परिज्ञा, ४. स्त्री-परिज्ञा, ५. नरक - विभक्ति, ६. वीरस्तुति, ७. कुशील - परिभाषा, ८. वीर्याध्ययन, ९. धर्मध्यान, १०. समाधि, ११. मोक्षमार्ग, १२. समवसरण, १३. याथातथ्य, १४. ग्रन्थ, १५. यमदीयं और १६. गाथा ।
संयम के १७ भेद हैं, उसके विपरीत असंयम भी १७ प्रकार का है। संयम के १७ भेद इस प्रकार हैं - १. पृथ्वीकाय संयम, २. अप्काय- संयम, ३. वायुकाय - संयम, ४. तेजस्काय - संयम, ५. वनस्पतिकाय-संयम, ६. द्वीन्द्रिय- संयम, ७. त्रीन्द्रिय- संयम, ८. चतुरिन्द्रिय- संयम, ९. पंचेन्द्रिय- संयम, १०. अजीवकाय - संयम, ११. प्रेक्षा - संयम, १२. उत्प्रेक्षा - संयम, १३. अपहृत - संयम, १४. प्रमार्जना-संयम, १५. मन-संयम, १६. वचन-संयम और १७. काय - संयम ।
इनके विरुद्ध पृथ्वीकाय असंयम, अप्काय- असंयम इत्यादि प्रकार से असंयम के १७ भेद हैं। तात्पर्य यह है कि सूयगडांग सूत्र के १६ अध्ययनों के निरन्तर अभ्यास करने में और १७ प्रकार के असंयमों अर्थात् असंयमस्थानों से निवृत्त होने में जो साधु सदा उपयोग रखता है उसका इस संसार में आवागमन मिट जाता है।
अब फिर इसी विषय में कहते हैं
-
बंभम्मि नायज्झयणेसु, ठाणेसु असमाहिए । जे भिक्खू जयई निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ १४ ॥
ब्रह्मणि ज्ञाताध्ययनेषु, स्थानेषु असमाधेः । यो भिक्षुर्यतते नित्यं स न तिष्ठति मण्डले ॥ १४ ॥
पदार्थान्वयः - बंभम्मि- ब्रह्मचर्य के १८ भेदों में, नायज्झयणेसु - ज्ञातासूत्र के १९ अध्ययनों में, असमाहिए-असमाधि के, ठाणेसु - २० स्थानों में, जे भिक्खू - जो भिक्षु, निच्चं - सदैव, जयई-यतना रखता है, से - वह, न अच्छइ- नहीं ठहरता, मंडले- संसार में।
मूलार्थ - जो भिक्षु अठारह ब्रह्मचर्य के भेदों में, उन्नीस ज्ञाता - अध्ययनों में और बी
उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [२०६ ] चरणविही णाम एगतीसइमं अज्झयणं