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________________ हुआ जीव ही संसार में परिभ्रमण करने वाला होता है। इसलिए जो भिक्षु राग और द्वेष का त्याग कर देता है, वह इस मंडल अर्थात् संसार में परिभ्रमण नहीं करता। तात्पर्य यह है कि उसका जन्म-मरण छूट जाता है। ___'मंडल' शब्द की व्याख्या वृद्धपरम्परा से 'संसार' ही चली आती है। मंडल-ग्रहणात् चतुरन्तः संसारः परिगृह्यते' अर्थात् मंडल से चतुर्गतिरूप संसार का ग्रहण किया जाता है। किसी-किसी प्रति में 'से न गच्छइ मंडले-स न गच्छति मण्डले' ऐसा पाठ भी देखने में आता है। अब फिर कहते हैं - दंडाणं गारवाणं च, सल्लाणं च तियं तियं । जे भिक्खू चयइ निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ ४ ॥ दण्डानां गौरवाणां च, शल्यानां च त्रिकं त्रिकम् । यो भिक्षुस्त्यजति नित्यं, स न तिष्ठति मण्डले ॥४॥ पदार्थान्वयः-दंडाणं-दंडों के, च-और, गारवाणं-गौरवों के, तथा, सल्लाणं-शल्यों के, तियं तियं-जो तीन-तीन हैं उनको, जे-जो, भिक्खू-साधु, चयइ-छोड़ता है, निच्चं-सदैव, से-वह, मंडले-संसार में, न अच्छइ-नहीं ठहरता। मूलार्थ-तीन दंडों, तीन गर्के और तीन शल्यों का जो भिक्षु सदैव के लिए त्याग कर देता है वह संसार में नहीं ठहरता। टीका-जिसके द्वारा चारित्र असार किया जाए और आत्मा दण्डनीय हो जाए, उसको दंड कहते हैं। तात्पर्य यह है कि मन, वाणी और शरीर के अशुभ व्यापार का नाम दंड है। (क) तीन दण्ड-मनदंड, वचनदंड और काय दंड। (ख) तीन गर्व-ऋद्धिगर्व, रसगर्व और सातागर्व। (ग) तीन शल्य-मायाशल्य, निदानशल्य और मिथ्यादर्शनशल्य। इस प्रकार दंड, गर्व और शल्यों का सर्वदा परित्याग करने वाला साधु इस संसार में परिभ्रमण नहीं करता, अर्थात् जन्म-मरण से रहित हो जाता है। .. उक्त विषय में ही अब फिर कहते हैं - दिव्वे य जे उवसग्गे, तहा तेरिच्छ-माणुसे । जे भिक्खू सहइ निच्चं, से न अच्छइ मंडले ॥ ५ ॥ दिव्यांश्च यानुपसर्गान्, तथा तैरश्च-मानुषान् । यो भिक्षुः सहते नित्यं, स न तिष्ठति मण्डले ॥ ५ ॥ पदार्थान्वयः-दिव्वे-देवता सम्बन्धी, जे-जो, उवसग्गे.-उपसर्ग हैं, तहा-तथा, तेरिच्छ-माणुसे-तिर्यक् और मनुष्यों के, जे-जो, भिक्खू-भिक्षु, सहइ-सहन करता है, निच्चं-नित्य-प्रति, से-वह, न अच्छइ-नहीं ठहरता, मंडले-संसार में। उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [१९९] चरणविही णाम एगतीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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