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________________ पदार्थान्वयः-भंते-हे भगवन्, धम्मकहाएणं-धर्मकथा से, जीवे-जीव, किं जणयइ-किस फल को प्राप्त करता है, धम्मकहाएणं-धर्मकथा से, निज्जरं-निर्जरा की, जणयइ-उत्पत्ति करता है, धम्मकहाएणं-धर्मकथा से, पवयणं-प्रवचन की, पभावेइ-प्रभावना करता है, पवयण-पभावेणं-प्रवचन की प्रभावना से, जीवे-जीव, आगमेसस्स-आगामी काल के, भद्दत्ताए-भद्रता के, कम्म-कर्म को, बंधइ-बांधता है। मूलार्थ-प्रश्न-हे भगवन् ! धर्मकथा कहने से इस जीव को किस गुण की प्राप्ति होती है ? उत्तर-हे शिष्य ! धर्मकथा कहने से कर्मों की निर्जरा होती है तथा प्रवचन की प्रभावना होती है। प्रवचन की प्रभावना से यह जीव भविष्यत्काल में केवल शुभ कर्मों का ही बन्ध करता है। टीका-शिष्य ने गुरु से पूछा कि भगवन् ! धर्म-कथा कहने से जीव को क्या फल प्राप्त होता है ? ___ गुरु कहते हैं कि धर्मकथा से कर्मों की निर्जरा और प्रवचन की प्रभावना होती है। प्रवचन की प्रभावना करने वाले आठ माने गए हैं।-१. धर्मकथा कहने वाला, २. प्रावचनी, ३. वादी, ४. नैमित्तिक, ५. तपस्वी, ६. विद्वान्, ७. सिद्ध और ८. कवि, इसलिए धर्मकथा कहने से प्रवचन की प्रभावना होती है और प्रवचन-प्रभावक जीव आगामी काल में भद्रकर्म का ही बन्ध करता है। परन्तु यहां पर इतना स्मरण रहे कि धर्मकथा के कहने का अधिकार उसी जीव को है जो उसमें योग्यता रखता है। यदि योग्यता के बिना प्रवचन करेगा तो उत्सूत्र-प्ररूपणा से भविष्यकाल में अशुभ कर्मों के बन्ध की भी पूरी सम्भावना रहती है। अब श्रुत की आराधना के सम्बन्ध में कथन करते हैं, यथा - सयस्स आराहणयाएणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? सुयस्स आराहणयाएणं अन्नाणं खवेइ, न य संकिलिस्सइ ॥ २४ ॥ श्रुतस्याऽऽराधनया भदन्त ! जीवः किं जनयति ? श्रुतस्याऽराधनयाऽज्ञानं क्षपयति, न च संक्लिश्यति ॥ २४ ॥ पदार्थान्वयः-भंते-हे भगवन्, सुयस्स आराहणयाएणं-श्रुत की आराधना से, जीवे-जीव, किं जणयइ-किस गुण की प्राप्ति करता है, सुयस्स आराहणयाएणं-श्रुत की आराधना से, अन्नाणं-अज्ञान का, खवेइ-क्षय करता है, य-पुनः, न-नहीं, संकिलिस्सइ-क्लेश को प्राप्त होता है। __मूलार्थ-प्रश्न-हे भगवन् ! श्रुत की आराधना से जीव किस गुण को प्राप्त करता है? उत्तराध्ययन सूत्रम् - तृतीय भाग [ १२५ ] सम्मत्तपरक्कम एगूणतीसइमं अज्झयणं
SR No.002204
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year2003
Total Pages506
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size11 MB
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