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उत्तराध्ययनसूत्रम्
[ पश्वदशाध्ययनम्
च
करने वाला सहिए-ज्ञान से युक्त आयगवेसए-आत्मा की गवेषणा करने वाला स- . वह भिक्खू-भिक्षु है।
मूलार्थ-जो सत्कार और पूजा की इच्छा नहीं रखवा, वन्दना और प्रशंसा को नहीं चाहता, वह संयत, सुव्रती, तपस्वी और ज्ञानादि के साथ आत्मा की गवेषणा करने वाला है और वही भिक्षु है।
____टीका-इस गाथा में सत्कार पुरस्कार परिषह की चर्चा की गई है। वास्तव में भिक्षु वही है, जो अपने सत्कार आदि की इच्छा नहीं रखता। जैसे कि मेरे आने से लोग खड़े हो जायँ और जब मैं कहीं जाऊँ तो मेरी भक्ति के निमित्त मुझे छोड़ने जावें, तथा वस्त्रादि से मेरी पूजा करें, और विधिपूर्वक मेरी वन्दना करें तथा समय २ पर मेरी प्रशंसा करें, इत्यादि । तात्पर्य कि इन सत्कार, पूजा आदि वस्तुओं की जो आकांक्षा नहीं करता, वह भिक्षु है। वही संयत-संयमशील, सुव्रती–सुन्दर व्रतों वाला, परमतपस्वी- उत्कृष्ट तप करने वाला, ज्ञान और क्रिया से युक्त तथा आत्मा की खोज करने वाला है। सारांश कि इन उक्त गुणों से जो विभूषित है, वह भिक्षु कहलाता है।
अब फिर इसी विषय की चर्चा करते हैं. जेण पुणो जहाइ जीवियं,
मोहं वा कसिणं नियच्छई। नरनारिं पजहे सया तवस्सी,
न य कोऊहलं उवेइ स भिक्खू ॥६॥ येन पुनर्जहाति जीवितं,
मोहं वा कृत्स्नं नियच्छति। नरनारि प्रजह्यात् सदा तपस्वी,
न च कौतूहलमुपैति स भिक्षुः ॥६॥ पदार्थान्वयः-जेण-जिससे पुणो-फिर जहाइ-छोड़ देता है जीवियंसंयम-जीवितव्य वा-अथवा मोहं-मोह कसिणं-सम्पूर्ण नियच्छइ-बाँधता है