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________________ ११३२] उत्तराध्ययनसूत्रम्- [पञ्चविंशाध्ययनम् new थी, परन्तु जब वे कर्मभूमियों की आकृति में आये, तब से उनकी क्रिया के अनुसार चारों वर्गों की स्थापना की गई। यथा- 'क्षमा दानं दमो ध्यानं सत्यं शौचं धृतिघृणा । ज्ञानविज्ञानमास्तिक्यमेतद् ब्राह्मणलक्षणम् ॥' इत्यादि वाक्योक्त क्रियाओं के आचरण करने वालों की ब्राह्मण संज्ञा हुई । क्षत नाम भय का है । अतः जो भय आदि से लोगों का संरक्षण करने लगे और परोपकार के लिए अपने जीवन को न्योछावर करने लगें, वे क्षत्रिय संज्ञा से अलंकृत हुए। जिन्होंने कृषिकर्म, पशुपालन और व्यापारादि में निपुणता प्राप्त कर ली, वे वैश्य कहलाए और जो शिल्पकला और सेवाकर्म में प्रवीण निकले, उनको शूद्र कहा गया । फिर इन चारों वर्गों के कुल बन गये। जैसे कि ब्राह्मणकुल, क्षत्रियकुल, वैश्यकुल और शूद्रकुल । इस प्रकार इन चारों वर्णों की उत्पत्ति कर्मों से ही मानी गई है। इस प्रकार का कथन महाभारत में भी विद्यमान है । यथा- 'एकवर्णमिदं सर्व, पूर्वमासीत् युधिष्ठिर ! क्रियाकर्मविभागेन, चातुर्वण्यं व्यवस्थितम् ॥' तात्पर्य यह है कि प्रथम एक ही वर्ण था। फिर क्रियाकर्म के विभाग से चारों वर्णों की व्यवस्था की गई। सर्वज्ञ ने इस बात का पहले उपदेश किया है। अब इसी विषय में कहते हैं। यथाएए पाउकरे बुद्दे, जेहिं होइ सिणायओ। सव्वकम्मविणिम्मुक्कं, तं वयं बूम माहणं ॥३४॥ एतान्प्रादुरकार्षी बुद्धः, यैर्भवति स्नातकः । सर्वकर्मविनिर्मुक्तं ,तं वयं ब्रूमो ब्राह्मणम् ॥३४॥ पदार्थान्वयः-एए-इन अनन्तरोक्त धर्मों को पाउकरे-प्रकट किया बुद्धबुद्ध ने—सर्वज्ञ ने जेहिं-जिनसे सिणायओ-स्नातक होइ-होता है सव्व-सर्व कम्म-कर्मों से विणिम्मुकं-विनिर्मुक्त तं वयं बूम माहणं-उसको हम ब्राह्मण कहते हैं। ___ मूलार्थ-इस धर्म को युद्ध ने-सर्वज्ञ ने प्रकट किया, जिससे कि यह जीव स्नातक हो जाता है । और कर्मों के बन्धन से मुक्त हो जाता है, उसी . को हम ब्राह्मण कहते हैं।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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