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________________ पञ्चविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [ ११०५ wwwr पदार्थान्वयः-जे-जो य-पुनः वेयविऊ-वेदों के जानने वाले विप्पाविप्र-ब्राह्मण हैं य-और जन्नट्ठा-यज्ञ के अर्थी जे-जो दिया-द्विज है य-और जे-जो जोइसंगविऊ-ज्योतिषांग के वेत्ता हैं य-तथा जे-जो धम्माण-धर्मों के पारगा-पारगामी हैं य-च-शब्द अन्यविद्या समुच्चयार्थक है। जे-जो समत्था-समर्थ हैं समुद्धत्तुं-उद्धार करने को परं-पर का अप्पाणंअपने आत्मा का एव-पादपूर्ति में है तेसिं-उनके लिए इणं-यह अन-भोजनादि पदार्थ देयं-देने योग्य है भो भिक्खू-हे भिक्षो ! सव्वकामियं-सर्व कामनाओं को पूर्ण करने वाला। __मूलार्थ हे मिचो ! जो वेदों के जानने वाले विप्र हैं तथा जो यज्ञ के करने वाले द्विज हैं और जो ज्योतिषांग के ज्ञाता हैं, एवं जो धर्मशास्त्रों के पारगामी हैं तथा अपने और पर के आत्मा का उद्धार करने में समर्थ हैं, उनके लिए सर्व कामनाओं को पूर्ण करने वाला यह अब-भोज्य पदार्थतय्यार किया गया है। ['युग्मव्याख्या ] टीका-इन दोनों गाथाओं का अर्थ स्पष्ट है। विजयघोष ने अपने यज्ञमण्डप में प्रस्तुत किये गये अन्न के अधिकारी कौन हैं अथवा किन पुरुषों के निमित्त यह अन्न-भोजन तय्यार किया गया है इत्यादि बातों का बड़े स्पष्ट शब्दों में वर्णन किया है। विजयघोष कहते हैं कि हे मुने ! यह भोजन उन पुरुषों के लिए तय्यार किया गया है कि जो निम्नलिखित गुणों से अलंकृत हैं। यथा—जो वेदवित्वेदों के जानने वाले ब्राह्मण हैं, इतना ही नहीं किन्तु जो यज्ञार्थी-वेदोक्त विधि के अनुसार यज्ञों का अनुष्ठान करने वाले द्विज हैं तथा ज्योतिषांग विद्या के ज्ञाता और धर्मशास्त्रों के पारगामी हैं। इसके अतिरिक्त जो स्वात्मा और पर के आत्मा का उद्धार करने का अपने में सामर्थ्य रखते हैं। तथा यह अन्न भी यज्ञ का अन्न है । अतः यह मनुष्यों की सर्व कामनाओं को पूर्ण करने वाला है । अथवा सर्व कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। इसका तात्पर्य यह है कि इस समय इस यज्ञ में खाने की सभी वस्तुएँ विद्यमान हैं । जिसको जिस वस्तु के खाने की इच्छा हो, वही उसको सुख से उपलब्ध हो सकती है। 'सर्वकाम्यम्' इसका यह अर्थ भी हो सकता है कि यज्ञ में प्रस्तुत किया गया यह भोजन षड्रसयुक्त है अर्थात् इसमें
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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