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चतुर्विंशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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काल, मार्ग और यतना -- इन चार कारणों का अनुसरण करना ईर्ष्या समिति है तात्पर्य यह है कि इन उक्त कारणों से परिशोधित जो गमन है, वही संयत पुरुष की ई समिति कहलाती है । यदि संक्षेप से कहें तो प्रमादरहित जो गमन है, वह ईर्या समिति है । इसके द्वारा सम्पादित किया गया व्यवहार कार्य का साधक होता है अर्थात् कर्मबन्ध का हेतु नहीं होता ।
अब आलम्बनादि कारणों के विषय में कहते हैं
तत्थ आलम्बणं नाणं, दंसणं चरणं तहा । काले य दिवसे वुत्ते, मग्गे उप्पह वखिए ॥५॥
ज्ञानं दर्शनं चरणं तथा । मार्ग उत्पथवर्जितः ॥ ५ ॥
तत्रालम्बनं
कालश्च दिवस उक्तः,
:- तत्थ - उक्त चारों
आलम्बणं-आलम्बन नाणं - ज्ञान
पदार्थान्वयः दंसणं-दर्शन तहा- तथा चरणं - चारित्र है य - और काले-काल दिवसे दिवस · बुत्ते. कहा गया है मग्गे -मार्ग उप्पह - उत्पथ से वञ्जिए - बर्जित - रहित ।
मूलार्थ - ईर्या के उक्त कारणों में से आलंबन ज्ञानदर्शन और चारित्र है । काल, दिवस है; और उत्पथ व त्याग, मार्ग है।
टीका- - इस गाथा में ईर्या के आलम्बनादि कारणों का वर्णन किया गया है । जैसे कि ज्ञानदर्शन और चारित्र का नाम आलम्बन है । जिसको आश्रित करके गमन किया जाय, वह आलम्बन कहाता है । पदार्थों के यथार्थ बोध का नाम ज्ञान, तत्त्वाभिरुचि दर्शन और सदाचार को चारित्र कहते हैं। इनको आश्रित करके जो गमन किया जाता है, वही सम्यक् गमन या ईर्या समिति है । अतः ये तीनों ईर्ष्या : में आलम्बन रूप माने गये हैं। इनके बिना अर्थात् इनकी उपेक्षा करके जो गमन है, वह निरालम्बन - आलम्बनरहित गमन है जिसकी कि साधु लिए आज्ञा नहीं । ईर्ष्या की शुद्धि में दूसरा कारण काल है। काल से यहाँ पर दिवस का ग्रहण अभिप्रेत है अर्थात् साधु के लिए गमनागमन का जो समय है, वह दिवस है . क्योंकि रात्रि में आलोक का अभाव होने से चक्षुओं की पदार्थों के साक्षात्कार में