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उत्तराध्ययनसूत्रम्-
[प्रयोविंशाध्ययनम्
रक्खस-राक्षस किन्नरा-किन्नर अदिस्साणं-अदृश्य भूयाणं-भूतों का च-पुनः आसी-हुआ तत्थ-वहाँ पर समागमो-समागम ।
- मूलार्थ-देव, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर तथा अदृश्य भूत इन सब का भी उस बन में समागम हुआ।
टीका-तिन्दुक नामा बन में सहस्रों मनुष्यों के एकत्रित होने के अतिरिक्त अनेक प्रकार के देव दानवों का भी समागम हुआ । यथा-देव-ज्योतिषी और वैमानिक, दानव-भवनपंति देव विशेष, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस और किन्नर-व्यन्तर जाति के देव विशेष वहाँ पर एकत्रित होगये। इसके अतिरिक्त अदृश्य भूतों का केलिकिल आदि वाणव्यन्तरों का भी वहाँ पर आगमन हुआ जोकि उनके किल किल शब्द से प्रमाणित हो रहा था । तात्पर्य यह है कि प्रथम के देवगण तो दृश्यरूप में वहाँ पर उपस्थित थे और कतिपय भूतगण अदृश्यरूप में वहाँ पर विद्यमान थे । इस बात को स्पष्ट करते हुए वृत्तिकार लिखते हैं कि- 'एते चानन्तरमदृश्य विशेषणात् दृश्यरूपाः अदृश्यानां च भूतानां केलिकिल व्यन्तर विशेषाणामासीत्' इत्यादि । इससे प्रतीत होता है कि मनुष्यों के प्रति दिखने और न दिखनेवाले देवंगण भी उन दोनों महापुरुषों की धर्म-चर्चा को श्रवण करने के लिए वहाँ पर आये।
इस प्रकार मनुष्यों और देवों का समारोह हो जाने के अनन्तर उन दोनों महर्षियों के धार्मिक वार्तालाप का आरम्भ हुआ
पुच्छामि ते महाभाग ! केसी गोयममब्बवी। तओ केसि बुवन्तं तु , गोयमो इणमब्बवी ॥२१॥ पृच्छामि त्वां महाभाग ! केशी गौतममब्रवीत् । ततः केशिनं ब्रुवन्तं तु , गौतम इदमब्रवीत् ॥२१॥
पदार्थान्वयः-महाभाग-हे महाभाग ! ते-तुझे पुच्छामि-पूछता हूँ केसीकेशीकुमार गोयम-गौतम को अब्बवी-कहने लगे तओ-तदनन्तर केसिं-केशीके बुवन्तं-बोलने पर उसके प्रति तु-पुनः अर्थका वा भिन्न क्रम का वाची है गोयमोगौतम इणं-इस प्रकार अब्बवी-कहने लगे।