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द्वाविंशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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का अर्थ है स्वतन्त्रतापूर्वक विचार करना अर्थात् वे अपने सदय हृदय में उन जीवों
की दशा का विचार करने लगे ।
सारथि के कथन को सुनकर उन्होंने क्या विचार किया ? अब इसी के विषय में कहते हैं—
जइ मज्झ कारणा एए, हम्मंति न मे एयं तु निस्सेसं, पर लोगे
यदि मम कारणादेते, हन्यन्ते कारणादेते, हन्यन्ते एतन्निःश्रेयसं, परलोके
न म
सुबहूजिया । भविस्सई ॥ १९ ॥
सुबहुजीवाः । भविष्यति ॥१९॥
पदार्थान्वयः — जइ – यदि मज्म- मेरे कारणा - कारण से एए- ये सब बहूजिया - बहुत से जीव हम्मंति- मारे जाते हैं न- नहीं मे - मेरे लिए एयं - यह निस्सेसं-कल्याणकारी परलोगे - परलोक में भविस्सई - होगा । तु - पादपूर्ति में ।
मूलार्थ - यदि ये बहुत से जीव मेरे कारण से मारे जाते हैं तो मेरे लिए यह परलोक में कल्याणप्रद नहीं होगा ।
टीका - भगवान् अरिष्टनेमि के मानसिक चिन्तन का ही प्रस्तुत गाथा में उल्लेख किया गया है । सारथि के कथन को सुनने के अनन्तर उन्होंने विचार किया कि इन अनाथ जीवों के वध में निमित्त तो मैं ही ठहरता हूँ । कारण यह है कि मैं विवाह के लिए उद्यत हुआ, तब ही मेरे साथ में आने वाले सैनिकों के लिए इनको एकत्रित किया गया अर्थात् इनको वध करने के लिए यहाँ पर लाया गया । अतः इनकी हिंसा का निमित्त मैं या मेरा यह विवाहमहोत्सव ही है । यदि ये अनाथ मारे जायँगे तो यह कार्य मेरे लिए परलोक में कल्याणकारी नहीं होगा, क्योंकि इस प्रकार की हिंसा महान् अनर्थ और भयंकर दुःख को उत्पन्न करने वाली होती है । यद्यपि चरमशरीरी होने से परलोक — अन्य जन्म की संभावना उनमें नहीं हो सकती तथापि हिंसा का कटुफल दिखलाने के लिए ही यह उल्लेख किया गया है । तात्पर्य यह है कि हिंसा रूप कार्य परलोक में किसी के लिए भी सुखावह नहीं होता । 'हम्मंति' यह 'वर्तमानसामीप्ये लट्' इस नियम के अनुसार भविष्यत् अर्थ का बोधन करने वाली क्रिया है, जिसका वास्तविक प्रतिरूप 'हनिष्यन्ते' होता है।