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द्वाविंशाध्ययनम् ]
हिन्दीभाषाटीकासहितम् ।
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वाले अनाथ जीवों को पिंजरों में डालकर और बाड़े में बन्द कर किसलिए दुःखी किया जा रहा है ? यद्यपि उन पशुओं को एकत्रित करने और बाड़े में बन्द करके रखने आदि का जो प्रयोजन है, उसको राजकुमार पहले से ही भली भाँति जानते थे परन्तु संव्यवहार के लिए अर्थात् लोक मर्यादा के लिए उन्होंने अपने सारथि से पूछा ।
भगवान् नेमिनाथ के पूछने पर सारथि ने जो उत्तर दिया, अब उसका वर्णन करते हैं
अह सारही तओ भणइ, एए भद्दा उ पाणिणो। तुझं विवाहकजमि, भोयावेडं बहुं जणं ॥१७॥ अथ सारथिस्ततो भणति, एते भद्रास्तु प्राणिनः । युष्माकं. विवाहकायें, भोजयितुं बहुं जनम् ॥१७॥
__पदार्थान्वयः-अह-तदनन्तर सारही-सारथि तओ-तदनु भणइ-कहता है एए-ये सब भद्दा-भद्रप्रकृति के पाणिणो-प्राणी तुभं-आपके विवाहकजंमिविवाहकार्य में बहुं जणं-बहुत जनों को भोयावेउ-भोजन करवाने के लिए।
मूलार्थ—तदनन्तर सारथि ने कहा कि ये सब भद्र-सरल-प्रकृति के जीव आपके विवाहकार्य में बहुत से पुरुषों को भोजन देने के लिए एकत्रित किये गये हैं!
टीका-श्रीनेमिकुमार के पूछने पर सारथि कहता है कि भगवन् ! आपके इस मंगलरूप विवाहकार्य में आये हुए बहुत से पुरुषों को इनके मांस का भोजन कराया जायगा । एतदर्थ ये सब प्राणी एकत्रित किये गये हैं। तात्पर्य यह है कि बारात में आये हुए बहुत से मेहमानों के निमित्त इनका वध किया जायगा । इस कथन से यह ज्ञात होता है कि भगवान नेमिकुमार के साथ जो सेना आई थी, उसके लोग प्रायः अधिक संख्या में मांस का भोजन करने वाले थे। इसी लिए उक्त गाथा में प्रयुक्त किया 'बहुं जणं' यह वाक्य सार्थक होता है । परन्तु श्रेष्ठ जनों के लिए इसका विधान नहीं । यदि सब के लिए मांस का भोजन अभीष्ट होता तो 'बहुं जणं' के स्थान में सर्वसाधारण का बोधक 'समस्त' या इसी प्रकार का कोई और शब्द प्रयुक्त किया