SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [६२७ नहीं तथा किसी प्रयोजन को लेकर श्रावक समुद्र-यात्रा भी कर सकता है और प्रथम भी करते थे। जैसे कि पालित द्वादशव्रतधारी श्रावक होकर भी जलयानों द्वारा व्यापार करता था। 'कोविद' विशेषण देने से यह ज्ञात होता है कि पहले के श्रावक लोग निम्रन्थ प्रवचन का भली भाँति स्वाध्याय करने वाले होते थे। एवं जैनधर्म के अनुयायी लोग विदेशयात्रा भी करते थे और आर्यावर्त का विदेशों से व्यापारिक सम्बन्ध भी था, यह भी उक्त गाथा से भली भाँति विदित होता है। पिहुंड नामक नगर में पहुँचने के अनन्तर क्या हुआ ? अब इसी विषय में कहते हैंपिहुंडे ववहरंतस्स, वाणिओ देइ धूयरं । तं ससत्तं पइगिज्झ, सदेसमह पत्थिओ ॥३॥ पिहुण्डे व्यवहरते (तस्मै), वणिग् ददाति दुहितरम् । तां ससत्त्वां प्रतिगृह्य, स्वदेशमथ प्रस्थितः ॥३॥ पदार्थान्वयः-पिहुंडे-पिहुण्ड नगर में ववहरंतस्स-व्यापार करते हुए उसको वाणिओ-किसी वैश्य ने धूयरं-अपनी पुत्री देइ-दे दी स-वह पालितनामा सेठ तंउस ससत्तं-अपनी गर्भवती स्त्री को पइगिज्झ-लेकर सदेसं-स्वदेश को पत्थिओचल पड़ा अह-अनन्तर अर्थ में है। मूलार्थ-तदनन्तर पिहुंडनामा नगर में व्यापार करते हुए उस पालित सेठ को किसी वैश्य ने अपनी कन्या दे दी। कुछ समय बाद अपनी गर्भवती स्त्री को साथ लेकर वह अपने देश की ओर चल पड़ा। ... टीका-पिहुंड में जाने के अनन्तर वह पालितनामा सेठ वहाँ व्यापार करने लगा। उसके गुण और रूप-सौन्दर्य को देखकर किसी वैश्य ने उसके साथ अपनी पुत्री का विवाह कर दिया। फिर वह सेठ उस कन्या के साथ सांसारिक सुख को भोगता हुआ कितने एक समय तक व्यापार के लिए उसी नगर में ठहरा रहा । जब उसका व्यापारसम्बन्धी काम समाप्त हो चुका, तब वह अपनी उस विवाहिता स्त्री को साथ लेकर अपने देश के प्रति चल पड़ा। परन्तु उस समय उसकी वह स्त्री गर्भवती
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy