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________________ अह समुद्दपालीयं एगवीसइमं अज्झयणं अथ समुद्रपालीयमेकविंशमध्ययनम् बीसवें अध्ययन में अनेक प्रकार से अनाथता का स्वरूप बतलाया गया है परन्तु अनाथता का अभाव और सनाथता की प्राप्ति का हेतु विविक्तचर्या है । अर्थात् विविक्तचर्या से यह जीव सनाथ हो सकता है । सो इस समुद्रपालीय नाम के इक्कीसवें अध्ययन में उस विविक्तचर्या का वर्णन किया जाता है, जिसकी आदिम गाथा इस प्रकार है चंपाए पालिए नाम, सावए आसि वाणिए। महावीरस्स भगवओ, सीसे सो उ महप्पणो ॥१॥ चम्पायां पालितो नाम, श्रावक आसीद् वणिक् । महावीरस्य भगवतः, शिष्यः स तु महात्मनः ॥१॥ ___ पदार्थान्वयः-चंपाए-चंपा नगरी में पालिए-पालित नाम-नाम का सावएश्रावक वाणिए-वणिक्-वैश्य आसि-रहता था सो-वह श्रावक उ-वितर्के महावीरस्स-महावीर भगवओ-भगवान् का सीसो-शिष्य था महप्पणो-महात्मा का । मूलार्थ-चम्पा नगरी में पालित नामक एक वैश्य श्रावक रहता था। वह महात्मा श्रीमहावीर भगवान् का शिष्य था। ।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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