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________________ ५६६ ] उत्तराध्ययनसूत्रम् ___[ चतुर्दशाध्ययनम् कि कामभोगसम्बन्धी सुखों की अपेक्षा दुःख अधिक और चिरकालस्थायी है । एवं ये कामभोग संसार के बन्धन का कारण होने से मोक्ष के पूर्ण प्रतिबन्धक हैं अर्थात् इनके संसर्ग में रहने वाला जीव मोक्ष के निरतिशय आनन्द को कभी प्राप्त नहीं कर सकता । अधिक क्या कहें, विश्व के सारे अनर्थों का मूल अगर कोई है तो ये विषय भोग ही हैं । इनके विना संसार में कोई उपद्रव या अनर्थ नहीं होता । अतः इन सर्वथा हेय पदार्थों के प्रलोभन से हम को संयममार्ग से वंचित रखने का प्रयत्न करना आप जैसे विचारशील पिता को किसी प्रकार से भी उचित नहीं, यह इस गाथा का फलितार्थ है। .... . कामभोगादि पदार्थ सब प्रकार के अनर्थों की खान हैं, यह बात ऊपर कही गई है। अब इसी को स्पष्ट करते हुए शास्त्र इनकी अनर्थकारिता का प्रतिपादन करते हैं परिव्वयन्ते अणियत्तकामे, अहो य राओ परितप्पमाणे। अन्नप्पमत्ते धणमेसमाणे, - पप्पोति मच्चु पुरिसे जरं च ॥१४॥ परिव्रजन्ननिवृत्तकामः . , . ___ अह्नि च रात्रौ परितप्यमानः। अन्यप्रमत्तो धनमेषयन् , ___ प्राप्नोति मृत्युं पुरुषो जरां च ॥१४॥ पदार्थान्वयः-परिव्ययंते-सर्व प्रकार से परिभ्रमण करता हुआ अणियत्तकामे-कामभोगों से जो निवृत्त नहीं हुआ अहो-दिन य-और रात्रओ-रात्रि में परितप्पमाणो-सर्व प्रकार से तपा हुआ अन्नप्पमत्ते-अन्न में प्रमत्त अथवा अन्य-दूसरों के लिए दूषित प्रवृत्ति करने वाला धणमेसमाणे-धन की गवेषणा करता हुआ पुरिसे-पुरुष मच्चु-मृत्यु च-और जरं-जरा को पप्पोति-प्राप्त होता है।
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
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