SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एकोनविंशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । अब फिर कहते हैं वडईहिं दुमो विव। कुहाङफरमाईहिं कुट्टिओ फालिओ छिन्नो, तच्छिओ य अनंतसो ॥६७॥ कुठारपरश्वादिभिः वार्धिकैर्दुम कुट्टितः पाटितरिछन्नः, तक्षितश्चानन्तशः इव | ॥६७॥ पदार्थान्वयः— कुहाड– कुठार फरसुम् - परशु आईहिं- आदि से ईबढ़ई—तरखानों—के द्वारा विव-जैसे दुमो-वृक्ष काटा जाता है, तद्वत् कुट्टिओसूक्ष्म - खंड रूप किया फालिओ-फाड़ दिया छिन्नो-छेदन किया य-और तच्छिओ-तराशा गया अणतसो-अ - अनन्त वार । " [ ८३१ , मूलार्थ — जैसे बढ़ई — तरखाण – कुठार और परशु आदि शस्त्रों से वृक्ष को फाड़ते हैं - चीरते हैं, टुकड़े २ करते हैं और तराशते अर्थात् छीलते हैं, उसी प्रकार मुझे भी काटा, चीरा और अनन्त वार तराशा गया । 1 टीका - इस गाथा में हरे भरे वृक्षों को काटना वा कटवाना तथा जंगल आदि के कटवाने का व्यापार करना इत्यादि काम भी अशुभ कर्मों के बन्ध का कारण होते हैं, यह भाव अर्थतः प्रकट किया गया है । क्योंकि वनस्पति भी सजीव पदार्थ है । उसके छेदन-भेदन में भी एकेन्द्रिय जीवों का वध होता है। अतएव इस प्रकार के व्यापार को शास्त्रकारों ने आर्य-व्यापार नहीं कहा । मृगापुत्र इसी पापजनक 1. व्यापार से परलोक में उत्पन्न होने वाली कष्टपरम्परा का वर्णन करते हुए अपने माता-पिता से कहते हैं कि जिस प्रकार बढ़ई लोग कुठार आदि शस्त्रों से वृक्ष को काटकर उसके टुकड़े २ कर देते हैं, तथा चीरकर दो फाँक कर देते हैं, एवं ऊपर से उसके छिलके उतार देते हैं, उसी प्रकार यमपुरुषों ने मुझे अनेक वार काटा, चीरा, फाड़ा और तराशा अर्थात् मेरी चमड़ी उतार दी । अब नरकसम्बन्धी अन्य यातना का वर्णन करते हैं " चवेडमुट्टिमाई हिं कुमारेहिं अयं पिव । ताडिओ कुट्टिओ भिन्नो, चुणिओ य अणन्तसो ॥६८॥
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy