SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 196
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टादशाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् । [७६३ सौवीरराजवृषभाः , त्यक्त्वा मुनिरचरत् । उदायनः प्रव्रजितः, प्राप्तो गतिमनुत्तराम् ॥४८॥ ___ पदार्थान्वयः-सोवीररायवसभो-सिन्धु सौवीर देश का, राजवृषभ, राजाओं में श्रेष्ठ- चइत्ता-राज्य को छोड़कर मुणी-मुनिवृत्ति में चरे-विचरता हुआ उद्दायणो-उदायन राजा पव्वइओ-प्रव्रजित होकर अणुत्तरं-प्रधान गई-गति को पत्तो-प्राप्त हो गया। मूलार्थ—सौवीर देश का राजवृषभ महाराजा उदायन अपने राज्यवैभव को त्यागकर और प्रबंजित होकर मुनिवृत्ति में आरूढ़ होता हुआ सर्व श्रेष्ठ मोक्षगति को प्राप्त हो गया। टीका–सिन्धु सौवीर देश का राजा उदायन, जो कि उस समय के राजाओं में वृषभ के समान था, अपने राज्यपाट को छोड़कर जिनधर्म में दीक्षित हो गया । तात्पर्य यह है कि संसार से विरक्त होकर मुनिवृत्ति का आचरण करता हुआ ज्ञान और चरित्र-सम्पन्न होकर मोक्षगति को प्राप्त हुआ । उदायन राजा भगवान् महावीर स्वामी का परम भक्त और तत्कालीन राजाओं में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। बीतभयपत्तन में इसकी राजधानी थी। एक समय भगवान महावीर स्वामी, विचरते हुए इसकी राजधानी के बाहर एक उद्यान में पधारे । भगवान के आने का समाचार पाते ही, उदायन नृपति बड़ी श्रद्धा से भगवान के दर्शन को गया और वहां पर उनके उपदेशामृत का पान करने से उसको वैराग्य हो गया। तदनुसार राज्य को पाप का हेतु समझकर उसने पुत्र को राज्य न देकर अपने भागनेय-भाणजा–को राजगद्दी पर बिठलाकर स्वयं दीक्षा ग्रहण करली और शुद्ध चरित्र का पालन करके मोक्ष को प्राप्त किया। - अब बलदेव आदि के सम्बन्ध में कहते हैंतहेव कासिरायावि, सेओ सच्चपरक्कमो। कामभोगे । परिच्चन्ज, पहणे कम्ममहावणं ॥४९॥ तथैव काशिराजोऽपि, श्रेयःसत्यपराक्रमः । कामभोगान् परित्यज्य, प्राहन् कर्ममहावनम् ॥४९॥
SR No.002203
Book TitleUttaradhyayan Sutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj, Shiv Muni
PublisherJain Shastramala Karyalay
Publication Year
Total Pages644
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_uttaradhyayan
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy