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- जातिमदप्रतिस्तब्धाः, हिंसका अजितेन्द्रियाः ।
- अब्रह्मचारिणो बाला, इदं वचनमब्रुवन् || ५ || पदार्थान्वयः–जाईमय—जातिमद से, पडिथद्धा—अहंकार युक्त, हिंसगा–हिंसा करने वाले, बाला—अज्ञानी, अजिइंदिया–इन्द्रियों के वशीभूत, अबंभचारिणो ब्रह्मचर्य से रहित-मैथुन का सेवन करने वाले, इमं—इस प्रकार, वयणं-वचन, अब्बवी—कहने लगे।
मूलार्थ-जातिमद से प्रतिस्तब्ध, हिंसा करने वाले, अजितेन्द्रिय, ब्रह्मचर्य से रहित अर्थात् मैथुन का सेवन करने वाले वे अनार्य ब्राह्मण उपहास करने के बाद उस मुनि से इस प्रकार कहने लगे।
टीका इस गाथा में उन यज्ञ करने वाले ब्राह्मणों के स्वरूप का कुछ वर्णन किया गया है। जब उन्होंने उक्त मुनि को देखा तो वे हंसने लगे, क्योंकि उनको—'हम ब्राह्मण हैं' इस प्रकार के जाति-मद का गर्व था। इसके अतिरिक्त वे हिंसक हैं अर्थात् जीवों के वध में प्रवृत्ति रखने वाले और इन्द्रियों के वशीभूत तथा मैथुन का सेवन करने वाले हैं, अतएव उनको यहां बाल-मूर्ख-अज्ञानी जीव कहा गया है। इस कथन का तात्पर्य यह है कि जिस व्यक्ति को किसी प्रकार का मद होता है वह अपने में रहे हुए अनेक अवगुणों को देख नहीं पाता। इसके अतिरिक्त उस पुरुष की हिंसक प्रवृत्ति भी उसके हृदय में सात्त्विक भाव को उत्पन्न होने नहीं देती तथा जो व्यक्ति इन्द्रियों के वशीभूत है, उसका अन्तःकरण भी धार्मिक भावनाओं से प्रायः शून्य ही होता है और जिसकी ब्रह्मचर्य में निष्ठा नहीं उसका जीवन तो धार्मिक उद्यान में एक नीरस तरु के समान होता है, इसीलिए उक्त दूषणों से व्याप्त होने वाला जीव अज्ञानी अथवा मूर्ख कहा जाता है, फिर वह यदि किसी परमार्थ-दर्शी तपस्वी . साधु-मुनि का उपहास करे या उसकी अवहेलना करे तो इसमें आश्चर्य की कौन-सी बात है? आए हुए मुनि हरिकेशबल को उन्होंने क्या कहा, अब इसी बात का उल्लेख करते हैं
कयरे आगच्छइ दित्तरूवे?, काले विकराले फोक्कनासे? |
ओमचेलए पंसु-पिसायभूए?, संकरदसं परिहरिय कंठे ॥ ६॥ - कतर आगच्छति दीप्तरूपः?, कालो विकरालः फोक्कनासः? |
। अवमचेलकः पांशुपिशाचभूतः?, संकर-दूष्यं परिधृत्य कंठे ॥ ६ ॥ पदार्थान्वयः कयरे—कौन, आगच्छइ आ रहा है, दित्तरूवे—दीप्तरूप, काले काले वर्ण वाला, विकराले–भयंकर, फोक्कनासे—ऊंची नासिका वाला, ओमचेलए—जीर्ण वस्त्रों वाला, पंसुपिसायभूए-रज-धूलि के स्पर्श से जो पिशाच के सदृश है, संकरदूसं—रूड़ी के वस्त्रों को, कंठे गले में परिहरिय-धारण करके।
मूलार्थ वह कौन आ रहा है? दीप्तरूप, काले वर्ण वाला, महाभयंकर और चपटी-नासिका वाला, जिसने कि असार अर्थात्, अत्यन्त जीर्ण वस्त्र पहन रखे हैं तथा रज के स्पर्श से जो पिशाच के तुल्य प्रतीत हो रहा है एवं रूड़ी से उठाए गए वस्त्रों के समान मैले एवं जीर्ण वस्त्र जिसने गले में धारण किए हुए हैं।
श्री उत्तराध्ययन सूत्रम् | 411 / हरिएसिज्जं बारहं अज्झयणं