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नया चिन्तन]
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सर
असूरियं णाम महाभितावं, अंध तमं दुप्पतरं महंतं। उड्ढे अहे यं तिरियं दिसासु, समाहिओ जत्थगणी झियाई।।
(सूगडो 5/1/11) असूर्य नाम का महान संतापकारी एक नरकावास है। वहां घोर अन्धकार है। जिसका पार पाना कठिन हो, इतना विशाल है। वहां ऊंची, नीची और तिरछी दिशाओं में निरंतर आग जलती है। अगणी-आग
तत्थ कालोभासी अचेयणो अगणिक्कायो। (चूर्णि, पृ. 129)
चूर्णिकार ने इसका अर्थ काली आभा वाला अग्निकाय किया है। वह अचेतन होता है। जंसी गुहाए जलणेऽतिवट्टे, अविजाणओं डज्झइ लत्तुपण्णो। सया य कलुणं पुण घम्मठाणं, गाढोवणीयं अइदुक्खधम्मं ।।
(सूयंगडो 5/1/12) __उसकी गुफा में नारकीय जीव ढकेला जाता है। वह प्रज्ञाशून्य नैरयिक निर्गमद्वार को नहीं जानता हुआ उस अग्नि में जलने लग जाता है। नैरयिकों . के रहने का वह स्थान सदा तापमय और करुणा उत्पन्न करने वाला है। . वह कर्म के द्वारा प्राप्त और अत्यन्त दुःखमय है।
चत्तारि अगणीओ समारभेत्ता, जहि कूरकम्मा भितवेंत बालं। ते तत्थ चिटुंतऽभितप्पमाणा, मच्छा व जीवंतु व जोइपत्ता।।
(सुयगडो 5/1/13) - क्रूरकर्मा नरकपाल नरकावास में चारों दिशाओं में अग्नि जलाकर इन
अज्ञानी नारकों को तपाते हैं। वे ताप सहते हुए वहां पड़े रहते हैं, जैसे अग्नि ... के समीप ले जाई गई जीवित मछलियां। .
अयं व तत्तं जलियं सजोइं, तओवमं भूमिमणुक्कमंता। ते डज्झमाणा कलुणं थणंति, उसुचोइया तत्तजुगेसु जुत्ता।।
(सुयगडो 5/2/4) तप्त लोह की भांति जलती हुई अग्नि जैसी भूमि पर चलते हुए वे जलने पर करूण रुदन करते हैं, वे बाण से बींधे जाते हैं और तपे हुए जुए से जुते रहते हैं। (1) तओवमं - अग्नि जैसी
सा तु भूमि............न तु केवलमेवोष्णा । ज्वलितज्योतिषाऽपि अणंतगुणं हि उष्णा सा, तदस्या औपम्यं तदोपमा। (सूत्रकृतांग चूर्णि, पृ. 135)