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आध्यात्मिक-वैज्ञानिक व्यक्तित्व ]
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नहीं कर सकते। इसलिए देश को आप जैसे संतों की बहुत अपेक्षा है। हम इस कार्य में आपके पूर्ण सहयोगी बनेंगे।
___ 14 फरवरी, 2003 को मुम्बई में हुए वार्ता के अंश
14 फरवरी को महामहिम राष्ट्रपति श्री ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने प्रद्धेय आचार्यप्रवर के दर्शन किए। राष्ट्रपति महोदय मुंबई हवाई अड्डे से सीधे पूज्यवर के दर्शनार्थ आए। रात्रि में लगभग नौ बजे राष्ट्रपति ने तेरापंथ भवन में प्रवेश किया और वहां से सीधे आचार्यवर के कक्ष में आए। विज्ञान के शिखरपुरुष श्री अब्दुल कलाम ने अध्यात्म के शिखरपुरुष आचार्यश्री महाप्रज्ञ के चरणों को श्रद्धा और भक्ति भरे हृदय से स्पर्श किया। देश के प्रथम नागरिक की विनम्रता ने सबके दिल को छू लिया। राष्ट्रपति महोदय पट्टासीन आचार्यश्री के सामने विनम्र मुद्रा में बैठे और वार्तालाप प्रारंभ हो गया। वह वार्तालाप देश की अनेक समस्याओं पर केन्द्रित रहा। उस महत्त्वपूर्ण और उत्प्रेरक वार्तालाप को अविकल रूप से प्रस्तुत किया जा रहा है।
डॉ. कलाम - आज आपके दर्शन कर बहुत प्रसन्नता हुई। आपका स्वास्थ्य कैसा है?
महाप्रज्ञ - अच्छा है। डॉ. कलाम - आपका श्रम और संयम निरंतर चल रहा है। महाप्रज्ञ - हां, वह तो जरूरी है।
डॉ. कलाम - आचार्यजी! मैंने आपकी पांच पुस्तकें पढ़ीं - द मिरर ऑफ सेल्फ, माइण्ड बियोण्ड माइण्ड, इकोनोमिक्स ऑफ महावीरा, आई एण्ड माइन - इनमें बहुत वैज्ञानिक विश्लेषण है। ___महाप्रज्ञ - विज्ञान तो आपका विषय है।
डॉ. कलाम - आपने इनमें सोलह मूल्यों की चर्चा की है। नैतिक, वैयक्तिक, सामाजिक और राष्ट्रीय मूल्यों के विकास पर बल दिया है।
महाप्रज्ञ - हां, एक नागरिक में उन मूल्यों का विकास होना अपेक्षित
डॉ. कलाम – (विस्मय से) आचार्यजी! आप इतना कब लिखते हैं?