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________________ 318] [ जैन विद्या और विज्ञान स्थिति में ही भय पनपता है। जागरूक अवस्था में भय टिक नहीं सकता। ज्ञान मुक्तिदाता है। एक बालक के मन में अनेक प्रकार के डर होते हैं, जो वयस्क व्यक्ति के मन में नहीं होते, क्योंकि उसे कई नियमों का ज्ञान होता है। केवल वही व्यक्ति भय से मुक्ति दिला सकता है, जिसने स्वयं भय से मुक्ति पा ली हो और जिसका संपूर्ण अस्तित्व अभय के प्रकंपनों से प्रतिट वनित होता है। ऐसे व्यक्ति ही अभय को प्राप्त होते हैं तथा औरों को अभय .. प्रदान करते हैं। अब मैं महर्षि पतंजलि के योगसूत्र से उद्धरण देना चाहूंगा। जब आप किसी महान उद्देश्य से असाधारण योजना (जैसे यूनिटी ऑफ माइंड का महान् उद्देश्य, जिसकी चर्चा आज कर रहे हैं) से प्रेरित होकर कार्य करते हैं, तब अपका चिंतन सारी सीमाएं लांघ जाता है। मन के अनेक आयाम खुल . . जाते हैं। आपकी चेतना सभी दिशाओं में फैलती है और आप स्वयं को एक नवीन, महान और अद्भुत संसार में पाते हैं। आपकी सुंदर सुप्त शक्तियां, योग्यताएं और प्रतिभाएं जीवित हो उठती हैं और आप अपने अंदर ऐसे महान व्यक्तित्व का अनुभव करते हैं, जिसकी शायद आपने कभी कल्पना भी नहीं की। यह संदेश हम सबके लिए प्रेरणादायी है। एक व्यक्ति के तौर पर और इस देश के राष्ट्रपति के तौर पर मैंने कई देशों की प्रजातांत्रिक प्रणालियों का अध्ययन किया है। मेरे विचार से कोई दूसरा ऐसा राष्ट्र नहीं है, जां सौ करोड़ लोग एक साथ रहते हों और विभिन्न भाषा, समुदाय, धर्म, जाति और सामाजिक परम्पराओं का आदर करते हों। इन अनिवार्य भिन्नताओं एवं इतनी बड़ी जनसंख्या की व्यवस्था करना हमारी अपनी विशिष्टता है। हम सब इतिहास की पोथी के एक-एकं पृष्ठ हैं। इस पृथ्वी पर छह अरब लोग निवास करते हैं। हम सबका अपना-अपना धर्म, परिवार, सहयोगी समाज और स्वप्न हैं। हमारे पास समय नहीं है कि हम इसका निरीक्षण करें कि हमारे इर्द-गिर्द क्या हो रहा है? हम सामान्यतः अपने तक ही केन्द्रित रहते हैं। पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती हुई सूर्य की परिक्रमा करती है। हमें चयन करना है कि हम अपने इर्द-गिर्द चक्कर लगाकर मरना चाहते हैं या सूर्य की परिक्रमा करके जीना? इसलिए यह आवश्यक है कि हमारी सोच, चिंतन और क्रियाएं अनवरत परिवर्तनशील और विकासमान हों। अब समय आ गया है कि हम अपने देश की परिकल्पना व्यापक संदर्भ में करें। राष्ट्र के विकास के दो आयाम हैं - आर्थिक विकास और नैतिक मूल्यों का विकास । देश की आबादी सौ करोड़ है। सत्तर करोड़ लोग गांवों में रहते
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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