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आध्यासिक-वैज्ञानिक व्यक्तित्व ]
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-बही व्यक्ति आध्यात्मिक हो सकता है, जिसका अपने संवेगों पर नियंत्रण हो। धार्मिक व्यक्ति भी संवेग-नियंत्रण की साधना नहीं करते तो यह आश्चर्य का विषय है। संवेग-नियंत्रण के लिए केवल सिद्धान्त-बोध पर्याप्त नहीं है। इसके लिए संवेग के नियामक तत्त्वों को जानना जरूरी है। इस संदर्भ में शरीर रचनाविज्ञान, शरीर क्रियाविज्ञान, मनोविज्ञान, जैविक रसायन विज्ञान आदि वैज्ञानिक प्रकल्पों का प्रबोध भी बहुत जरूरी है।
वर्तमान में हिंसा बढ़ रही है, उसका प्रमुख कारण संवेगों की उच्छृखलता है। संवेग-संतुलन और आध्यात्मिक विकास - दोनों में सामंजस्य किए बिना धर्म का आध्यात्मिकरण नहीं हो सकता और हिंसा की बाढ़ को रोकने में सफलता भी नहीं मिल सकती। मानव जाति के उत्थान और शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के विकास के लिए बहुत आवश्यक है - संवेग-नियंत्रण की प्रयोगात्मक पद्धति का विकास करना।
सन् 2020 तक भारत को प्रथम कोटि का राष्ट्र बनाने की राष्ट्रपति की परिकल्पना केवल आर्थिक और औद्योगिक विकास की नहीं हो सकती। वह आर्थिक विकास और आध्यात्मिक विकास - दोनों के साहचर्य से हो सकती है। धर्मगुरुओं का यह प्रमुख कर्तव्य है कि वे आध्यात्मिक विकास के दायित्व को व्यापक बनाएं। ___मैं विश्वास करता हूँ, धर्मगुरुओं का तथा वैज्ञानिक दृष्टिसंपन्न और अध्यात्म के प्रति समर्पित भारत के राष्ट्रपति का यह संवाद राष्ट्र की अनेक समस्याओं को सुलझाने में सार्थक सिद्ध होगा। इस पथ-दर्शन के द्वारा विश्व को अशांति की समस्या को सुलझाने में योग मिलेगा।
आचार्यवर ने आगे कहा - 'इस परिषद् में गरीबी की चर्चा चली। मैं गरीबी की अपेक्षा अमीरी को ज्यादा खतरनाक मानता हूं।' परिवर्तन के लिए प्रयोग पद्धति की चर्चा करते हुए आचार्यप्रवर ने कहा - 'पुस्तक पढ़ने से परिवर्तन होता है, किन्तु उसके साथ-साथ कुछ प्रायोगिक पद्धति भी चले। हमने अनुभव किया, अनुप्रेक्षा का प्रयोग कराया और उसका परिणाम भी देखा। उसमें संकल्प, सुझाव आदि-आदि का प्रयोग कराया जाता है। उससे आदमी को बदलने में काफी सहायता मिलती है।
सभी धर्माचार्यों के इतने अच्छे विचार सुने। सभी धर्मों में इतनी अच्छी बातें हैं कि किसको प्रथम मानूं? यह निर्णय करना कठिन है। लेकिन इतने
अच्छे सिद्धान्तों के होते हुए भी हिंसा बढ़ रही है, यह हमारे सामने प्रश्न है। • इसके तीन प्रमुख कारण सामने आ रहे हैं -