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________________ 304] [ जैन विद्या और विज्ञान बीमारियां तनाव के कारण होती हैं। जब तनाव कम होता है तो ये मनोकायिक बीमारियां अपने आप कम हो जाती हैं। अनिद्रा, चिंता, इनसे होने वाली कठिनाइयां, अपने आप मिटती हैं। (ii) प्रयोग - - 1. शरीर को स्थिर, शिथिल और तनाव-मुक्त करें। मेरुदण्ड और गर्दन को सीधा रखें । मांसपेशियों को ढीला छोड़ें, शरीर की पकड़ छोड़ें। 2. प्रतिमा की भांति शरीर को स्थिर रखें। चित्त को पैर से सिर तक क्रमशः प्रत्येक भाग पर ले जाएं। शिथिलता का सुझाव दें। शरीर शिथिल हो जाए। प्रत्येक मांसपेशी ओर प्रत्येक स्नायु शिथिल हो जाए। 3. अनुभव करें - शरीर का एक-एक भाग शिथिल होता जा रहा है। शरीर के प्रत्येक भाग में हल्केपन का अनुभव करें। पैर से सिर तक पूरा शरीर शिथिल हो गया है। आसन __ जीवन विज्ञान में 'आसनों को विशेष महत्त्व दिया गया है। विभिन्न प्रकार के आसन मस्तिष्क के सभी भागों को जागरूक करते हैं। इसके अभाव में होने वाले परिणामों से आचार्य महाप्रज्ञ अवगत कराते हैं कि जब रक्त में, मस्तिष्क में तथा मूत्र में एमीनो एसिड की मात्रा बढ़ जाती है तो आदमी हिंसक बन जाता है। इनकी मात्रा में संतुलन स्थापित करना योगासन के द्वारा संभव दो दिशाएं शिक्षा के क्षेत्र में हमारे समक्ष दो दिशाएं हैं। एक है ज्ञान की दिशा और दूसरी है चरित्र की दिशा। इन दोनों में महत्त्वपूर्ण है चरित्र का विकास। बौद्धिक विकास अध्ययन से हो सकता है किन्तु नैतिक मूल्यों का विकास केवल अध्ययन से नहीं हो सकता। उसके लिए आवश्यक है - अभ्यास , ध्यान आदि के प्रयोग। जीवन विज्ञान का प्रयत्न विकास की चार दिशाओं में हैं। (1) भावनात्मक विकास (2) संवेग नियंत्रण की क्षमता का विकास (3) सृजनात्मक शक्ति का विकास (4) सामुदायिक चेतना का विकास
SR No.002201
Book TitleJain Vidya aur Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahaveer Raj Gelada
PublisherJain Vishva Bharati Samsthan
Publication Year2005
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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