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मस्तिष्क की कोशिकाएं
इसके निष्कर्ष में आचार्य महाप्रज्ञ का मानना है कि हमारे जीवन का आधार है - मस्तिष्क की कोशिकाएं । मस्तिष्क सारे शरीर तंत्र का नियामक है। सुनने का तन्त्र मस्तिष्क में है। सारे ज्ञान का ग्राहक और संचालक स्थान मस्तिष्क है। सारी स्मृतियां यहाँ संग्रहित हैं। मस्तिष्क को जागृत करना स्मृति
शों को जागृत करना है। हमारा मस्तिष्क बहुत शक्तिशाली है। अरबों कोश है, अरबों संस्कार संग्रहित है, स्मृतियां संग्रहित हैं। अवधान विद्या उन्हीं स्मृतिकोशों का चमत्कार है। अतः यह मानना उचित प्रतीत होता है कि जब तक कोशिकाएं जीवित रहती हैं तो हृदय गति बन्द हो जाने पर भी आदमी मरता नहीं है। यह मस्तिष्क जितना ठंडा रहता है उतना ही जीवन अच्छा रहता है और उतना ही चिन्तन स्वस्थ होता है।
[ जैन विद्या और विज्ञान
स्मृति कोश
आज के मस्तिष्क विज्ञानी कहते हैं हम अपने मस्तिष्क की सिर्फ चार या पांच प्रतिशत शक्ति का ही उपयोग कर पाते हैं। यदि कोई सातआठ प्रतिशत शक्ति का उपयोग करने लग जाए तो वह दुनिया का एक बहुत बड़ा विचारक बन जाता है। आचार्य महाप्रज्ञ ने इस संबंध में अपनी जिज्ञासा रखते हुए प्रश्न किया है कि जैसे हमारे मस्तिष्क में वर्तमान जन्म के स्मृति कोश होते हैं, वैसे पूर्वजन्म के स्मृति - कोश होते हैं या नहीं ? यह एक जटिल प्रश्न है। आज के शरीर शास्त्री और मनोवैज्ञानिक इन कोशों को खोज नहीं पाए हैं किन्तु कर्म-शास्त्रीय दृष्टि से जिसमें पूर्वजन्म की स्मृति की संभावना है, उसमें उन कोशों की विद्यमानता की संभावना भी की जा सकती है। इसका कारण है कि मस्तिष्क का एक बहुत बड़ा भाग मौन क्षेत्र (Silent Area) या अंधकार क्षेत्र (Dark Area) है। इसके विकास की संभावनाएं हो सकती हैं। हो सकता है, उस क्षेत्र में वे स्मृतिकोश उपलब्ध हो जाएं। संस्कार और व्यवहार
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जीवन के गहरे रहस्यों को प्रकट करते हुए आचार्य महाप्रज्ञ आयु, शरीर और मस्तिष्क की सापेक्षता का वर्णन करते हुए लिखते है कि जीवन का पहला अध्याय है बचपन । बच्चा बहुत कुछ लेकर आता हैं उसमें अच्छाइयां भी है और बुराइयां भी है। वह आनुवंशिकता के सूत्र में बंधा हुआ होता है । क्रोमोसोम और जीन गुणसूत्र और संस्कार-सूत्र वह लेकर आता है । उसमें अनेक संस्कार हैं। इसमें भी आगे चलें तो उसमें कर्म के संस्कार विद्यमान
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