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अभिव्यक्ति के कारण ही गणाधिपति श्री तुलसी ने उनको 'तेरापंथ प्रवक्ता के गरिमामय संबोधन से सम्बोधित किया है। डॉ. गेलड़ा द्वारा प्रणीत "जैन विद्या और विज्ञान; संदर्भ : आचार्य महाप्रज्ञ का साहित्य" नामक ग्रन्थ दर्शन
और विज्ञान के क्षेत्र में कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए मार्गदर्शक का कार्य करेगा, ऐसा विश्वास है। डॉ. गेलड़ा का यह प्रयत्न कार्य का प्रारम्भ है इति नहीं है। उनको इस दिशा में और अधिक कार्य करना है।
जैन विश्व भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के शोध विभाग "महादेवलाल सरावगी अनेकांत शोधपीठ" के तत्त्वावधान में समायोजित यह शोध कार्य शोधपीठ के उद्देश्यों की सम्पूर्ति में उठा एक विशिष्ट कदम है, ऐसा मेरा मानना है।
आचार्य महाप्रज्ञ के साहित्य में जैन दर्शन के संदर्भ में समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, स्वास्थ्यशास्त्र, मनोविज्ञान, भौतिक विज्ञान आदि विभिन्न विषयों का विशद विवेचन हुआ है। प्रस्तुत ग्रन्थ वैज्ञानिक अवधारणाओं को केन्द्र में रखकर प्रणीत हुआ है। इसी प्रकार विभिन्न क्षेत्रों के विद्वान महाप्रज्ञ साहित्य में उपलब्ध तद्-तद् विषयों को अपने लेखन का विषय बनाकर जैन विद्या के शैक्षणिक विस्तार में महत्त्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। अनेकान्त शोधपीठ का यह संकल्प भी है कि इस प्रकार अनेक विषयों की कार्ययोजना बनाकर जैन विद्या के अमूल्य चिंतन को प्रकाश में लाया जाए। प्रस्तुत ग्रन्थ उसी संकल्प की सम्पूर्ति में उठा प्रथम एवं एक विशिष्ट कदम है।
समणी मंगलप्रज्ञा निदेशक - महादेव लाल सरावगी अनेकांत शोधपीठ
जैन विश्व भारती संस्थान, लाडनूं (राज.)
इजलिन, (न्यूजर्सी) अमेरिका 7/7/2004