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साहित्य इतने परिमाण में है कि पाठकों के अध्ययन के लिए एक पुस्तक का आकार ले सकता है। मेरी भावना बनी कि एक कार्ययोजना के द्वारा उपर्युक्त साहित्य का संकलन, विश्लेषण कर विस्तार दूं।"
प्रो. महावीर राज गेलड़ा मुख्य रूप से विज्ञान के अध्येता रहे हैं, इसी पृष्ठभूमि के आधार पर उन्होंने दर्शन के गहन तत्त्वों को समझने का प्रयत्न किया है। उनकी अपनी विशिष्ट वक्तृत्व शैली है जिसके माध्यम से वे श्रोता तक अपनी बात बहुत ही तर्कसंगत एवं सुरुचिपूर्ण ढंग से पहुंचाने में सक्षम हैं। जिससे श्रोता का विषय के प्रति सहज आकर्षण तो बढ़ता ही है तथा वह उस विषय के प्रति और अधिक जिज्ञासु हो जाता है।
प्रो. महावीर राज गेलड़ा ने प्रस्तुत ग्रन्थ का प्रणयन आचार्य महाप्रज्ञः । के साहित्य के आलोक में किया है। प्ररोचना में उन्होंने "विज्ञान और अध्यात्म का समन्वय' शीर्षक में आचार्य महाप्रज्ञ के द्वारा प्रयुक्त विज्ञान के विषयों का उल्लेख करके प्रस्तुत ग्रन्थ के विवेच्य विषय का संकेत बहुत ही स्पष्ट रूप से पाठक के सामने प्रस्तुत कर दिया है। प्रो. गेलड़ा ने आचार्य महाप्रज्ञ के विचारों का मात्र संकलन ही नहीं किया है उनकी समपुष्टि में उन्होंने आधुनिक वैज्ञानिक चिंतन को भी प्रस्तुत किया है। उसके कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं जो उनकी वैज्ञानिक समझ की गंभीरता को प्रस्तुत करते हैं -
» द्रव्यमान (mass) और शक्ति (energy) के परस्पर रुपान्तर के
सम्बन्ध में आइंस्टीन द्वारा प्रदत्त समीकरण E = mc का उल्लेख विज्ञान के विद्यार्थी को दर्शन के अध्ययन की ओर आकृष्ट करता
है।
» कर्म प्रकम्पन के महाप्रज्ञ के सिद्धान्त में अपनी सहमति प्रस्तुत करते
हुए विद्वान लेखक लिखते हैं कि "कर्म को प्रकम्पित करने के लिए श्वास और संकल्प को जो प्रधानता दी है उसका संभवतः यह कारण है कि कर्म का भौतिक स्वरूप चतुःस्पर्शी पुद्गलों से बना है और चतुःस्पर्शी पुद्गलों का प्रकम्पन चतुःस्पर्शी पुद्गल ही कर सकते हैं। यह महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त है कि सूक्ष्म, सूक्ष्म को प्रभावित
करता है।" » आचार्य महाप्रज्ञ प्रदत्त सर्वज्ञता की अवधारणा को सम्पुष्ट करते हुए
प्रो. गेलड़ा ने गणित की दृष्टि से एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण तथ्य को अभिव्यक्त किया है। वे लिखते हैं - "गणितीय दृष्टि से अनंत