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[ जैन विद्या और विज्ञान
आत्म-प्रदेशों की सघनता
जैन सिद्धान्त के अनुसार प्रत्येक आत्मा असंख्य चेतन प्रदेश वाली है। सभी संसारी आत्माएं शरीर युक्त हैं। शरीर में आत्मा के प्रदेशों का फैलाव समांगी नहीं है। आचार्य महाप्रज्ञ ने शरीर प्रेक्षा का वर्णन करते हुए चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा के संबंध में लिखा हैं कि हमारे शरीर में कुछ मर्म स्थान होते हैं। आयुर्वेद में बहुत मर्म स्थान बतलाए गए। मनुष्य के शरीर में सुश्रुत के अनुसार डेढ़ सौ के लगभग मर्म स्थान होते हैं।
स्याद्वाद मंजरी में इसका सुंदर अर्थ आचार्य मल्लिसेन ने किया है - बहुभिरात्म – प्रदेशैरिधष्ठिता देहावयवाः मर्म
जहां आत्मा के प्रदेश बहुत सघन हो जाते हैं, उस स्थान का नाम है मर्म। आत्मा पूरे शरीर में व्याप्त है किंतु आत्मा के जो असंख्य प्रदेश हैं वे प्रदेश कहीं सघन हैं और कहीं बहुत विरल।. एक बिंदु जितना स्थान ऐसा हो सकता है जहां हजारों-लाखों प्रदेश हो सकते हैं और कोई स्थान है जहां विरल है। नदी का पानी कहीं बहुत सघन होता है और कहीं छितरा हुआ है। वैसे ही आत्मा के प्रदेश कहीं छितरे हुए हैं और कहीं बहुत सघन बन गए हैं। जहां आत्मा के प्रदेश एक स्थान पर ज्यादा इकट्ठा हो गए उस स्थान का नाम है मर्म स्थान। उसी का नाम हठयोग की भाषा में है चक्र, प्रेक्षा ध्यान की भाषा में है चैतन्य केन्द्र और ओकल्ट साइंस की भाषा में है साइकिक सेन्टर । नाम भिन्न हो सकते हैं तात्पर्य में कोई भेद नहीं है। मूल बात एक ही है और वह है आत्मा के प्रदेश की सघनता। जहां हमारी चेतना का जागरण अधिक हो सकता है उस पर हम जितना ध्यान करें चेतना हमारी अधिक जागृत होगी और हमारा अधिक विकास होगा। संवादी केन्द्र
जैन दृष्टि से प्रत्येक संसारी आत्मा भौतिक कर्मों से बंधी है। उसी के अनुसार प्राणी कर्म-फल प्राप्त करता है। आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार हर कर्म के अपने शरीर में संवादी केन्द्र बने हुए हैं। कर्म शरीर उन्हें प्रभावित करता है। तब कर्म अपना फल देते हैं। इनके केन्द्र केवल मस्तिष्क में ही नहीं हैं, शरीर के शेष अवयवों में भी हैं। शरीर में संवादी केन्द्र है। साधना करने से