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आचार्य महाप्रज्ञ जैन विद्या के विश्वकोश सदृश (Encyclopaedic) ज्ञान के धनी है। वे भारतीय चिंतन परम्परा के गंभीर ज्ञाता हैं और आधुनिक मनोविज्ञान तथा विज्ञान के चिंतन से भी परिचित हैं। आगम और दर्शन के विषयों का प्रतिपादन, बोधगम्य करने की दृष्टि से विज्ञान का उपयोग किया है।
वे अनुभव करते हैं कि वैज्ञानिक चिंतन और आविष्कार के बाद विकास की अवधारणा इतनी जटिल हो गई है कि पीछे लौटना भी संभव नहीं है और पीछे लौटे बिना सभ्यता पर छाए हुए संकट के बादलों का बिखरना भी संभव नहीं। अतः तकनीकी विकास पर विवेकपूर्ण अंकुश लगना जरूरी है।