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आशीर्वचन
अर्हम्
सत्य का अर्थ है अस्तित्व। वह सत् विद्यमान है। यह सत्तात्मक सत्य है। अतीन्द्रिय चेतना संपन्न साधकों ने उसकी खोज की है इसलिए वे सत्यगवेषी कहलाते हैं। सत्य की खोज का एक अर्थ है नियम की खोज। जो सार्वभौम नियम है, वह सत्य है। वैज्ञानिक नियम की खोज में लगा हुआ है इसलिए वह भी सत्य-गवेषी है। __ भगवान महावीर का निर्देश है -
'अप्पणा सच्चमेसेज्जा - स्वयं सत्य खोजो।' स्वयं सत्य के खोजने का दृष्टिकोण वैज्ञानिक दृष्टिकोण है इसलिए अतीन्द्रिय ज्ञानी की खोज और वैज्ञानिक की खोज के बीच लक्ष्मण-रेखा नहीं खींची जा सकती। .
. मैंने धार्मिक और दार्शनिक सिद्धांतों की वैज्ञानिक सिद्धांतों से तुलना की है उसे सापेक्ष दृष्टि से संवादिता भी कहा जा सकता है या तुलना भी कहा जा सकता है।
डॉ. महावीर राज गेलडा ने उस तलना अथवा संवादिता को ध्यान में रखकर 'जैन विद्या और विज्ञान; संदर्भ : आचार्य महाप्रज्ञ का साहित्य' ग्रन्थ तैयार किया है। डॉ. गेलड़ा जैन आगमों के गहन अध्येता हैं और विज्ञान के सद्यस्क अनुसंधानों की जानकारी रखने के लिए विज्ञान के ग्रन्थों का अध्ययन करते रहते हैं। उन्होंने अनेक पुरस्कार प्राप्त किए हैं। "जैन विद्या मनीषी" का पुरस्कार उनकी जैन विद्या के प्रति गहनतम रुचि का द्योतक है। गणाधिपति श्री तुलसी ने डॉ. गेलड़ा को 'तेरापंथ प्रवक्ता' के गरिमामय सम्बोधन से सम्बोधित किया।
"जैन विद्या और विज्ञान' पर लिखा गया यह ग्रन्थ दर्शन के विद्यार्थी के लिए जितना उपयोगी है उतना ही विज्ञान के विद्यार्थी के लिए उपयोगी है। डॉ. गेलड़ा का यह प्रयत्न सत्य-संधित्सु के लिए नया आयाम खोलने वाला होगा।
29 मार्च, 2004, इंदौर
आचार्य महाप्रज्ञ