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________________ सप्ततिकानामा षष्ठ कर्मग्रंथ. ६ G६ए बंधोति के में अल्पागमपणे बांध्यो , एटले में अस्प शास्त्रने जाणवे करी बांध्यो ने तेथी पूर्ण अर्थ बांध्यो न होय, इति एटखे एवा हेतु माटें ते ते अर्थ बंधाविकने विषं जिहां जेटलो उदो कहेवाणो होय तंखमिऊण के० ते रूप महारो अपराध जे अजाणपणुं तेने खमीने बहुसुश्रा के बहुश्रुत बहुसिकतना जाण जे गीतार्थ होय तेमणे पूरेऊणं के ते उंबा अर्थनी प्रतिपादक एवी गाथादिकें करी पूरीने ते तत्प्रतिपादक गाथा ग्रंथमध्ये प्रक्षेपीने शिष्य बागलें तथा श्रोताजनो भागले परिकहंतु के० परिसमाप्त एटले संपूर्ण अर्थ कहेवो. जे जणी बहुश्रुत सजान ते सहेजें परिपूर्ण ज्ञान सारसंपत्तिनी युक्ततायें करी परोपकार करवाने रसिकज होय . माटे महारी उपर तथा शिष्य उपर उत्कृष्ट उपकारने कर्त्ता एवा ते बहुश्रुत सऊन ते अवश्य महारो अपरिपूर्ण अर्थानिधानलक्षणरूप अपराध, तेने सहन करी परिपूर्ण अर्थ पूरीने शिष्यने कहो. ते नणी बहुश्रुतने ए प्रार्थना युक्तज २ ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ए॥ ॥हवे गाथामान कहे .॥ गादग्गं सयरीए, चंदमहत्तर मयाणु सारीए॥ टीगाइ नियमि आणं, एगूणा दोश् ननई ॥५३॥ अर्थ- गादग्गंसयरीए के० ए सप्ततिका ग्रंथना कर्ता चंजमहत्तराचार्य पूर्व तो सीत्तेर गाथाज करी हती, जे मात्रै ए ग्रंथ- सप्ततिका एवं नाम थयु. चंदमहत्तरमयाणुसारीएटीगाशनियमिथाणं के तेवार पडी ए ग्रंथनी टीकाकर्तायेंए पुर्बोध ग्रंथ जापीने ग्रंथकर्ता चंडमहत्तराचार्यनी मतिने अनुसारें जिहां जोश्य, तिहां नाष्यनी गाथा नेखीने सुबोध कीधो, तेवारे ते चंप्रमहत्तरनी यंत्री शांकली गाथा मूकीने टीकाकारें ए सप्ततिकानी गाथा एगणाहोश्नई के एकूणी ने एटले सर्व मलीमे नेव्याशी गाथा संपूर्ण करी. ए रीतें ए सप्ततिकानामें हो कर्मग्रंथ समाप्त थयो ॥ इति समुच्चयार्थः ॥ ३॥ ॥ इति सप्ततिकानामा षष्ठः कर्मग्रंथः समाप्तः ॥ ॥ अथ प्रशस्तिः ॥ ॥ श्रीचंगछांबरपूर्णचंसो, मेधाविधिष्ण्योपगतो वितंडः ॥ प्राप्तप्रतिष्ठोयवनेश्व. सत्सु, सूरीश्वरोऽनूहिजयादिसेनः ॥१॥ तत्पट्टपूर्वाचलचित्रलानुः, कुपक्षकक्षोख्वणचिबनानुः ॥ महातपाख्यातधरो धरायां, जीयात्स सूरिविजयादिदेवः ॥२॥ तत्पट्टना. व्यप्रियमौलिपृष्ठोऽनूसूरिराजो विजयादिसिंहः॥ यमोचरस्पृथकूप्रशमोमृतोमात्, पु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002168
Book TitlePrakarana Ratnakar Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1912
Total Pages896
LanguageHindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size27 MB
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